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________________ पुनर्जन्म हिन्दू धर्म की तरह जैन धर्म में भी जीवात्मा के अमरत्व की धारणा तथा उसी पर आधारित पुनर्जन्म में विश्वास कर्म-सिद्धान्त का केन्द्रबिन्दु है। स्थानान सब में जो छह विकल्प सुझाये गये हैं उनमे जीवात्मा के अमरत्व का स्पष्ट निर्देश मिलता है। जीवात्मा के दूसरे शरीर में प्रवेश करने के या अन्य जन्म ग्रहण करने के छह मार्ग हो सकते हैं : (1) वर्तमान जीवन में किये गये दुष्कर्मों के लिए दूसरे जन्म की जरूरत होती है - और यह अगला जन्म हो सकता है या उसके बाद का जन्म, (2) पिछले या उससे भी पहले के जन्मों में किये गये दुष्कर्म वर्तमान जन्म में फलित हो सकते हैं,(3) इसी प्रकार पूर्वजन्म में किये गये दुष्कर्म वर्तमान जीवन में अब तक फलित नहीं हुए हैं और शेष वर्तमान जीवन में फलित भी नही हो सकेंगे, इसलिए एक और जन्म की जरूरत होगी। अर्थात, पूर्वजन्म में किये गये दुष्कर्मों के फल आगे के जन्म में या उसके भी आगे के जन्म में भुगतने पड़ेंगे। इसी प्रकार सत्कर्मों के बारे में; (4) इम जन्म में किये गये सत्कर्मों के फल अगले जन्म में या उसके आगे के किसी जन्म में मिलेंगे; (5) पूर्वजन्म के सत्कर्मों के फल वर्तमान जन्म में मिल सकते हैं; और (6) पिछले जन्म के या पहले के किसी जन्म के सत्कार्यों के फल वर्तमान जन्म में अब तक मिले नहीं हो सकते और शेष जीवन में भी मिलने की संभावना नहीं है, तो उनके लिए अन्य जन्म की जरूरत होगी। फल यद्यपि अगले जन्म में भी मिल सकते हैं, परन्तु दावे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता।. यहां यह बताना जरूरी है कि दो अन्य संभावनाओं को भी माना गया है : (1) वर्तमान जीवन के सत्कर्मों का फल इसी जन्म में मिल सकता है, और (2) वर्तमान जीवन के दुष्कर्मों का फल भी इसी जीवन में मिल सकता है। इन संभावनामों का उल्लेख इस व्यापक संदर्भ में किया गया है कि आदमी को अपने (अच्छे या बुरे) कर्मों का फल भोगना ही होता है। जीवात्मा के अमरत्व तथा पुनर्जन्म को सिद्ध करने के बाद एक महत्त्व का प्रश्न सामने आता है। पुनर्जन्म का अर्थ क्या सदैव मागे की मोर का विकास है ? 1. IV. 2.7 2. बही
SR No.010094
Book TitleJain Darshan ki Ruprekha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorS Gopalan, Gunakar Mule
PublisherWaili Eastern Ltd Delhi
Publication Year
Total Pages189
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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