________________
जैन दर्शन के मौलिक तत्व (३१ जो आत्मा बालक-शरीर में रहती है, वही आल्ला युवा-शरीर में रहती है और वही रख-शरीर में। स्थूल शरीर व्यापी आत्मा कश-शरीर-व्यापी हो जाती है। कश-शरीर-व्यापी आत्मा स्थूल-शरीर-व्यापी हो जाती है।
इस विषय में एक शंका हो सकती है कि आत्मा को शरीर-परिमाण मानने से यह अवयव सहित हो जाएगी और अवयव सहित हो जाने से यह अनित्य हो जाएगी, क्योंकि जो अवयव सहित होता है, वह विशरणशीलअनित्य होता है। घड़ा अवयव सहित है, अतः अनित्य है ? इसका समाधान यह है कि यह कोई नियम नहीं कि जो अवयव सहित होता है, वह विशरणशील ही होता है। जैसे घड़े का श्राकाश, पट का आकाश इत्यादिक रूपता से आकाश सावयव है और नित्य है, वैसे ही आत्मा भी सावयव और नित्य है और जो अवयव किसी कारण से इकट्ठे होते हैं, वे ही फिर अलग हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त जो अविभागी अवयव है, वे अवयवी से कमी पृथक नहीं हो सकते।
विश्व की कोई भी वस्तु एकान्त रूप से नित्य व अनित्य नहीं है, किन्तु नित्यानित्य है। आत्मा नित्य भी है, अनित्य भी है। आत्मा का चैतन्य स्वरूप कदापि नहीं छूटता, अतः आत्मा नित्य है। आत्मा के प्रदेश कमी संकुचित रहते हैं, कमी विकसित रहते हैं, कभी सुख में, कभी दुःख मेंइत्यादिक कारणों से तथा पर्यायान्तर से आत्मा अनित्य है। अतः स्याद्वाद दृष्टि से सावयवकता भी आत्मा के शरीर-परिमाण होने में बाधक नहीं है। जीव-परिमाण
जीवों के दो प्रकार है-मुक्त और संसारी। मुक्त जीव अनन्त हैं। संसारी जीवों के छह निकाय हैं। उनका परिमाण निम्नप्रकार है :
पृथ्वी.........असंख्य जीव पानी.......... " अग्नि........... " वायुः..........., वनस्पति........ अनन्त जीव स........... असंख्य जीव