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जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
स्थूल ही होते हैं। शेष पांच निकाय के जीव स्थूल सूक्ष्म जीवों से समूचालोक भरा है। इसलिए वे लोक के थोड़े माग
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अस काय के जीब और सूक्ष्म दोनों प्रकार के होते हैं। स्थूल जीव आधार बिना नहीं रह सकते। में हैं ४
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एक-एक काय में कितने जीव हैं, यह उपमा के द्वारा समझाया गया है :
एक हरे आंवले के समान मिट्टी के ढेले में जो पृथ्वी के जीव हैं, उन सब में से प्रत्येक का शरीर कबूतर जितना बड़ा किया जाय तो वे एक लाख योजन लम्बे-चौड़े जम्बूद्वीप में नहीं समाते ५० ।
पानी की एक वृन्द में जितने जीव है, उन मब सरसों के दाने के समान बनाया जाए तो वे समाते ५११
में से प्रत्येक का शरीर उक्त जम्बूद्वीप में नहीं
एक चिनगारी के जीवों में से प्रत्येक के शरीर को लीख के समान किया जाए तो वे भी जम्बूद्वीप में नहीं ममाते ५२ |
नीम के पत्ते को छूने वाली हवा में जितने जीव है, उन सब में से प्रत्येक के शरीर को स्वमखम के दाने के समान किया जाए तो वे जम्बूद्वीप में नहीं समाते 1431
शरीर और आत्मा
शरीर और आत्मा का क्या सम्बन्ध है ? मानसिक विचारों का हमारे शरीर तथा मस्तिष्क के साथ क्या सम्बन्ध है ? -- इस प्रश्न के उत्तर में तीन वाद प्रसिद्ध हैं।
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( १ ) एक पाक्षिक क्रियावाद [ भूत चैतन्यवाद ]
( २ ) मनोदैहिक सहचरवाद
(३) अन्योन्याश्रयवाद
भूत चैतन्यवादी केवल शारीरिक व्यापारों को ही मानसिक व्यापारों का कारण मानते हैं । उनकी सम्मति में आत्मा शरीर की उपज है, मस्तिष्क की विशेष कोष्ठ- क्रिया ही चेतना है। ये प्रकृतिबादी भी कहे जाते हैं । श्रात्मा को प्रकृति-जन्य सिद्ध करने के लिए ये इस प्रकार अपना अभिमत प्रस्तुत