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जैन दर्शन के मौलिक तत्व १. मूल मानव-अधिकारों और संयुक्त राष्ट्र-उद्देश्य-पत्र के उद्देश्यों के
प्रयोजनों और सिद्धान्तों के प्रति आदर। २. सभी राष्ट्रों की प्रमु-सत्ता और प्रादेशिक अखण्डता के लिए सम्मान । ३. छोटे बड़े सभी राष्ट्र और जातियों की समानता को मान्यता। ४. अन्य देशों के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करना। ५. संयुक्त राष्ट्र-उद्देश्य-पत्र के अनुसार अकेले अथवा सामूहिक रूप से . प्रात्म रक्षा के प्रत्येक राष्ट्र के अधिकार के प्रति आदर । ६. किसी भी बड़ी शक्ति के स्वार्थ की पूर्ति के लिए सामूहिक सुरक्षा के
आयोजनों के उपयोग से अलग रहना, एक देश का दूसरे देश पर दबाव न डालना। ७. ऐसे कार्यों-अाक्रमण अथवा बल-प्रयोग की धमकियों से अलग रहना,
जो किसी देश की प्रादेशिक अखण्डता अथवा राजनीतिक स्वाधीनता . के विरुद्ध हों। ८. सभी आन्तरिक झगड़ों का शान्तिपूर्ण उपायों से निपटारा करना। ६. पारस्परिक हित एवं उपयोग को प्रोत्साहन देना। १०. न्याय और अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों के लिए सम्मान ।
१३ जन ५५ को नेहरू, बुल्गानिन के संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर हुए। उनमें पंचशील का तीसरा सिद्धान्त अधिक व्यापक रूप में मान्य हुआ है"किमी भी राजनीनिक, आर्थिक अथवा सैद्धान्तिक कारण से एक दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करना।"
इस राजनीतिक नयवाद की दार्शनिक नयवाद और सापेक्षवाद से तुलना कीजिए। १-कोई भी वस्तु और वस्तु-व्यवस्था स्यावाद या सापेक्षवाद की मर्यादा
से बाहर नहीं है । २-दो विरोधी गुण एक वस्तु में एक साथ रह सकते हैं। उनमें
सहानवस्थान (एक साथ न टिक सके) जैसा विरोध नहीं है । ३-जितने वचन-प्रकार हैं उतने ही नय हैं । -ये विशाल धानसागर के अंथ है।. .. . .