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________________ जैन दर्शन के मौलिक तत्व [ 201 एक जाति या राष्ट्र दूसरी जाति या राष्ट्र पर हावी हुआ या होता है, वह इसी एकान्तवाद की प्रतिच्छाया है 1 पर के जागरण काल में स्व के सकता । वहाँ दोनों मध्य रेखा पर बन जाता है। आज की राजनीति सापेक्षता की दिशा में गति कर रही है। कहना चाहिए - विश्व का मानस अनेकान्स को समझ रहा है और व्यवहार में उतार रहा है। उत्कर्ष का पारा ऊँचा चढ़ा नहीं रह भ्रा जाते हैं। इनका दृष्टिकोण सापेक्ष स्वेज के प्रश्न पर शान्ति, सद्भावना, मैत्री और समझौतापूर्ण दृष्टि से विचार करने की जो गूंज है, वह वृत्तियों के सन्तुलन की प्रगति का स्पष्ट संकेत है। यही घटना यदि सन् १६४६ या ३६ में घटी होती तो परिणाम भयंकर हुत्रा होता किन्तु यह सन् ५६ है । इस दशक का मानस समन्वय की रेखा को और स्पष्ट खींच रहा है। भगवान् महावीर का दार्शनिक मध्यम मार्ग ज्ञात-अज्ञात रूप में विकसित हो रहा है I अन्तर्राष्ट्रीय क्षेत्र में पंचशील की गूंज, बांडंग सम्मेलन में उनमें और पांच सिद्धान्तों का समावेश, २६ राष्ट्रों द्वारा उनकी स्वीकृति - ये सब समन्वय के प्रगति चिह्न हैं । पंच शील १ - एक दूसरे की प्रादेशिक या भौगोलिक अखण्डता एवं सार्वभौमिकता का सम्मान | २-अनाक्रमण । ३ - अन्य देशों के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप न करना । m ४ - समानता एवं परस्पर लाभ । ५ शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व | दश सिद्धान्त बांडुंग सम्मेलन द्वारा स्वीकृत दश विज्ञान्य हैं
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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