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________________ जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व ने नहीं सोचते कि मौत के समय कोई शरण नहीं देता। जीवन अत्राण है। शस्त्रीकरण का परिणाम शस्त्रीकरण करने वाला, कराने वाला, उसका अनुमोदन करने वाला एक दिशा से दूसरी दिशा में पर्यटन करता है। उनके स्थान निम्न होते हैं:कोई अन्धा होता है तो कोई काना, कोई बहरा होता है तो कोई गंगा, कोई कुबड़ा और कोई बौना, कोई काला और कोई चितकबरा-यू उनका संसार रंग बिरंगा होता है। नेतृत्व का महत्त्व जो व्यक्ति शस्त्र प्रयोग के द्वारा दूसरों को जीतना चाहते हैं-वे दिङ्- .. मूद हैं। लोक-विजय के लिए शस्त्रीकरण को प्रोत्साहन देने वाले जनता को घोर अन्धकार में ले जा रहे हैं। वे कल्याण-कारक नेता नहीं हैं। दिङ-मूढ़ नेता और उसका अनुगामी समाज, ये दोनों अन्त में पछताते हैं । अन्धा अन्धों को सही पथ पर नहीं ले जा सकता। इसलिए नेतृत्व का प्रश्न बहुत महत्त्वपूर्ण है। सफल नेता वही हो सकता है, जो दूसरों के अधिकारों को कुचले बिना निजी स्रोतों को ही विकासशील बनाए । पाण्डित्य जो समय को समझता है, उसका मूल्य अांकता है, वह पण्डित है। वह व्यामूढ़ नहीं बनता। वह समय को समझ कर चलता है। मंद व्यकि मोह के मार से दब जाता है। वह न पार-गामी होता है और न पारगामी-न इधर का रहता है और न उधर का । जो व्यक्ति अलोम से लोभ को जीतते हैं, वे पारगामी है; जन-मानस के सम्राट हैं। लोक-विजय के लिए जन-बल और शस्त्र-बल का संग्रह और प्रयोग करने वाले अदूरदर्शी है। दूरदर्शी जो होते हैं, वे शस्त्र प्रयोग न करते, न करवाते और न करनेवाले का समर्थन ही करते। लोक विजय का यही मार्ग है। इसे समझने काला कहीं भी नहीं बंधता । वह अपनी स्वतंत्र बुद्धि और स्वतन्त्र गति से चलता है।
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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