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________________ ३५२ 1 जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व } ६ सम्यक व्यायाम ७ सम्यक स्मृति ८ सम्यक् समाधि समाधि निर्मल ज्ञान की प्राप्ति के लिए यही एक मार्ग है और कोई मार्ग नहीं है। इस मार्ग पर चलने से तुम दुःख का नाश करोगे । विचार बिन्दु महात्मा बुद्ध ने केवल मध्यम मार्ग का श्राश्रय लिया । उसमें श्रापद्धर्मों या अपवादों का प्राचुर्य रहा । भगवान् महावीर श्रापद्धर्मों से दूर होकर चले । काय- क्लेश को उन्होंने अहिंसा के विकास के लिए श्रावश्यक माना । किन्तु साथ-साथ यह भी कहा कि बल, श्रद्धा, आरोग्य, क्षेत्र और काल की मर्यादा को सममकर ही आत्मा को तपश्चर्या में लगाना चाहिए । गृहस्थ - श्रावकों के लिए जो मार्ग है, वह मध्यम मार्ग है । चार सत्य महात्मा बुद्ध ने चार सत्यों का निरूपण व्यवहार की भूमिका पर किया जबकि भगवान् महावीर के नव तत्वों का निरूपण अधिक दार्शनिक है । संसार, संसार- हेतु, मोक्ष और मोक्ष का उपाय – ये चार सत्य पातञ्जल भाष्यकार ने भी माने हैं। उन्होंने इसकी चिकित्सा शास्त्र के चार अङ्गो - रोग, रोग- हेतु, आरोग्य और भैषज्य से तुलना की है। rand 34 महात्मा बुद्ध ने कहा - भिक्षुओं ! "जीव ( आत्मा ) और शरीर मिन्नभिन्न है - ऐसा मत रहने से श्रेष्ठ-जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता ३९ । और जीव ( आत्मा ) तथा शरीर दोनों एक है” —ऐसा मस रहने से भी श्रेष्ठ जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता । इसलिए भिक्षु ! इन दोनों सिरे की बातों को छोड़कर तथागत बीच के धर्म का उपदेश देते हैं 梦 ን अविद्या के होने से संस्कार, संस्कार के होने से विज्ञान, विज्ञान के होने
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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