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जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
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६ सम्यक व्यायाम
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सम्यक स्मृति
८ सम्यक् समाधि
समाधि
निर्मल ज्ञान की प्राप्ति के लिए यही एक मार्ग है और कोई मार्ग नहीं है। इस मार्ग पर चलने से तुम दुःख का नाश करोगे ।
विचार बिन्दु
महात्मा बुद्ध ने केवल मध्यम मार्ग का श्राश्रय लिया । उसमें श्रापद्धर्मों या अपवादों का प्राचुर्य रहा । भगवान् महावीर श्रापद्धर्मों से दूर होकर चले । काय- क्लेश को उन्होंने अहिंसा के विकास के लिए श्रावश्यक माना । किन्तु साथ-साथ यह भी कहा कि बल, श्रद्धा, आरोग्य, क्षेत्र और काल की मर्यादा को सममकर ही आत्मा को तपश्चर्या में लगाना चाहिए । गृहस्थ - श्रावकों के लिए जो मार्ग है, वह मध्यम मार्ग है ।
चार सत्य
महात्मा बुद्ध ने चार सत्यों का निरूपण व्यवहार की भूमिका पर किया जबकि भगवान् महावीर के नव तत्वों का निरूपण अधिक दार्शनिक है ।
संसार, संसार- हेतु, मोक्ष और मोक्ष का उपाय – ये चार सत्य पातञ्जल भाष्यकार ने भी माने हैं।
उन्होंने इसकी चिकित्सा शास्त्र के चार अङ्गो - रोग, रोग- हेतु, आरोग्य और भैषज्य से तुलना की है।
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महात्मा बुद्ध ने कहा - भिक्षुओं ! "जीव ( आत्मा ) और शरीर मिन्नभिन्न है - ऐसा मत रहने से श्रेष्ठ-जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता ३९ । और जीव ( आत्मा ) तथा शरीर दोनों एक है” —ऐसा मस रहने से भी श्रेष्ठ जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता ।
इसलिए भिक्षु ! इन दोनों सिरे की बातों को छोड़कर तथागत बीच के धर्म का उपदेश देते हैं
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अविद्या के होने से संस्कार, संस्कार के होने से विज्ञान, विज्ञान के होने