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जैन दर्शन के मौलिक तत्व
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(५) तपस्वी, (६) स्थविर, (७) साधर्मिक-समान धर्म आचार बाला, (८) कुल, (६) गण, (१०) संघ ।
गौतम -- भगवन् ! स्वाध्याय क्या है !
भगवान् गौतम ! स्वाध्याय का अर्थ है-श्राम विकासकारी अध्ययन । इसके पांच प्रकार है
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(१) वाचन, (२) प्रश्न, (३) परिवर्तन - स्मरण, (४) अनुप्रेक्षाचिन्तन ( ५ ) धर्म - कथा ।
गौतम - भगवन् — ध्यान क्या है ?
भगवान् - गौतम ! ध्यान ( एकानता और निरोध ) के चार प्रकार हैं( १ ) श्रार्त्त, (२) रौद्र, (३) धर्म, (४) शुक्ल ।
श्रार्त्त ध्यान के चार प्रकार हैं- (१) मनोश वस्तु का संयोग होने पर उसके वियोग के लिए, (२) मनोश वस्तु का वियोग होने पर उसके संयोग के लिए, (३) रोग-निवृत्ति के लिए, (४) प्राप्त सुख-सुविधा का वियोग न हो इसके लिए, जो आतुर भावपूर्वक एकाग्रता होती है, वह श्रार्त्त ध्यान है । ( २ ) शोक, ( ३ ) रुदन और (४) बिलाप ये चार
( १ ) श्राक्रन्द
उसके लक्षण है ।
(१) हिंसानुबन्धी ( २ ) असत्यानुबन्धी ( ३ ) चोर्यानुबन्धी प्राप्त भोग के संरक्षण सम्बन्धी जो चिन्तन है, वह रौद्र ( क्रूर ) ध्यान है ।
(१) स्वल्प हिंसा आदि कर्म का आचरण (२) अधिक हिंसा आदि कर्म का आचरण (३) अनर्थ कारक शस्त्रों का अभ्यास ( ४ ) मौत श्राने ' तक दोष का प्रायश्चित्त न करना-ये चार उसके लक्षण हैं। ये दो ध्यान वर्जित है ।
(१) आशा- निर्णय ( आगम या वीतराग वाणी ), ( २ ) अपाय, ( दोष-य) निर्णय, (३) विपाक ( हेय - परिणाम ) निर्णय, (४) संस्थाननिर्णय-- यह धर्म ध्यान है ।
( १ ) आशारुचि, (२) निसर्गरुचि, (३) उपदेश -रुचि, (४) सूत्ररुचि - यह चतुर्विष भद्धा उसका लक्षण है।