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________________ ३२४1 जैन दर्शन के मौलिक तत्व जैनाचार्यों ने आहार के समय, मात्रा और योग्य वस्तुओं के विषय में बहुत गहरा विचार किया है। रात्रि-भोजन का निषेष जैन-परम्परा से चला है। जनवरी को उप का एक प्रकार माना गया। मिताराम पर बहुत मार दिया गया। मह, मांस, मावक पदार्थ और विकृति का वर्णन भी साधना , के लिए आवश्यक माना गया। तपयोग भगवान् ने कहा-गौतम ! विज्ञादीव-तत्त्व से वियुक्त कर अपने आप में युक्त करने वाला योग मैंने बारह प्रकार का बतलाया है। उनमें (१) अनशन, (२) ऊनोदरी, (३) बत्ति-संक्षेप, (४) रस-परित्याग, (५) काय-क्लेश, (६) प्रतिसंलीनता-ये छह बहिरङ्ग योग हैं। (१) प्रायश्चित्त, (२) विनय (३) वैयावृत्त्य, (४) स्वाध्याय (५) ध्यान और (६) न्युत्सर्ग-ये बह अन्तरंग योग हैं। । गौतम ने पूछा-भगवन् ! अनशन क्या है ? भगवान् गौतम ! आहार-त्याग का नाम अनशन है । वह (१) इत्वरिक (कुछ समय के लिए ) भी होता है, तथा (२) यावत्-कथित ( जीवन भर के लिए ) भी होता है। गौवम-भगवन् । उनोदरी क्या है ? भगवान् गौतम ! ऊनोदरी का अर्थ है कमी करना। (१) द्रव्य-ऊनोदरी-खान-पान और उपकरणों की कमी करना। (२) भाव-ऊनोदरी-क्रोध, मान, माया, लोभ और कलह की कमी करना। इसी प्रकार जीविका-निर्वाह के साधनों का संकोच करना वृत्ति सरस आहार का त्याग रस परित्याग है। पविलीमका का अर्थ है बाहर से हट कर अन्तर में लीन होना । जसके चार प्रकार है(१) इन्द्रिय-प्रविलीनता। (२) कमाय-अतिसंलीनता-अनुदित क्रोध, मान, मास और सोम का
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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