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जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
घ - चौथी बार उसने अधिक हिम्मत के साथ उस भार को उठाया और वह ठीक वहीं जा ठहरा, जहाँ उसे जाना था ।
गृहस्थ के लिए – (क) पांच शीलवतों का और तीन गुणत्रतों का पालन एवं उपवास करना पहला विश्राम है (ख) समायिक तथा देशावका शिक व्रत लेना कुमरा विश्राम है, (ग) अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा को प्रतिपूर्ण पौषध करना तीसरा विश्राम है (घ) अन्तिम मारणांतिक संलेखना करना चौथा विश्राम है ।
(४) प्रतिमा - घर - यह चौथा स्तर है" * । प्रतिमा का अर्थ श्रभिग्रह या प्रतिज्ञा है। इसमें दर्शन और चारित्र दोनों की विशेष शुद्धि का प्रयत्न किया जाता है। इनके नाम, कालमान और विधि इस प्रकार है :
नाम
(१) दर्शन-प्रतिमा
(२) व्रत- प्रतिमा
(३) सामायिक प्रतिमा
(४) पौषध - प्रतिमा
(५) कायोत्सर्ग-प्रतिमा
(६) ब्रह्मचर्य - प्रतिमा
(७) सचिताहार वर्जन - प्रतिमा (८) स्वयं प्रारम्भ वर्जन - प्रतिमा
(e) प्रेष्यारम्भ वर्जन - प्रतिमा
(१०) उद्दिष्ट भक्त वर्जन - प्रतिमा
(११) भ्रमणभूत- प्रतिमा
विधि :--
कालमान
एक मास
दो मास
तीन मास
चार मास
पाँच मास
छह मास
सात मास
आठ मास
नव मास
दस मास
ग्यारह मास
पहली प्रतिमा में सर्व-धर्म (पूर्ण-धर्म ) कचि होना, सम्यक्त्व - विशुद्धि रखना सम्यक्त्व के दोषों को वर्जना ।
दूसरी प्रतिमा में पाँच अणुव्रत और तीन गुणव्रत धारण करना तथा पौषधउपवास करना ।
ales प्रतिमा में सामायिक और देशाकाशिक व धारण करना।...