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________________ जैन दर्शन के मालिक ताप चौथी प्रतिमा में अष्टमी, चतुर्दशी अमावस्था और पूर्णमासी को प्रतिपूर्ण पौषध-व्रत का पालन करना । पाँचवी प्रतिमा में (१) स्नान नहीं करना (२) रात्रि भोजन नहीं करना (३) धोती की लोग नहीं देना (1) दिन में ब्रह्मचारी रहना (५) रात्रि में मैथुन का परिमाण करना। छठी प्रतिमा में सर्वथा शील पालना। सातवी प्रतिमा में सचित्त-माहार का परित्याग करना। आठवीं प्रतिमा में स्वयं प्रारम्भ-समारम्भ न करना। नौवों प्रतिमा में नौकर-चाकर आदि से प्रारम्भ-समारम्भ न कराना। दशवी प्रतिमा में उद्दिष्ट भोजन का परित्याग करना, बालों का तुर से मुण्डन करना अथवा शिखा धारण करना, घर सम्बन्धी प्रश्न करने पर मैं - जानता हूँ या नहीं', इन दो वाक्यों से ज्यादा नहीं बोलना। ___ ग्यारहवीं प्रतिमा में तुर से मुण्डन करना अथवा शुल्चन करना और साधु का प्राचार, भण्डोपकरण एवं वेश धारण करना। केवल शाति-वर्ग से ही उसका प्रेम-बन्धन नहीं टूटता, इसलिए भिक्षा के लिए केवल शातिजनों में ही जाना। (५) प्रमत्त मुनि-यह पाँचवा स्तर है। यह सामाजिक जीवन से पृथक केवल साधना का जीवन है। (६) अप्रमत्त-मुनि-यह छठा स्तर है। प्रमत्त-मुनि साधना में स्खलित भी हो जाता है किन्तु अप्रमत्त मुनि कभी स्खलित नहीं होता। अप्रमाद-दशा में वीतराग माव आता है, केवल-शान होता है। (७) अयोगी-यह सातवाँ स्तर है। इससे आत्मा मुक्त होता है। इस प्रकार साधना के विभिन्न स्तर हैं। इनके अधिकारियों की योग्यता भी विभिन्न होती है । योग्यता की कसौटी वैराग्य भावना या निर्मोह मोक्ता है। उसकी सरतमता के अनुसार ही साधना का मालम्बन लिया जाता है। हिंसा हेय है-यह जानते हुए भी उसे सब नहीं छोड़ सकते। सामा के तीसरे स्तर में हिंसा का आंशिक त्याग होता है। हिंसा के निम्न प्रकार
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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