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________________ वन बौसिक तब (६) लोक मर्यादा-जिसने क्षेत्र में जीव और पुद्गल गति कर सकते , . उतना क्षेत्र 'लोक' है और जितना क्षेत्र लोक है, उतने क्षेत्र में जीव और पुद्गल गति कर सकते है। (१०) अलोकगति कारणाभाष-लोक के सब अन्तिम भागों में प्राबद्धपार्श्व-स्पृष्ट पुद्गल है। लोकान्त के पुद्गल स्वभाव से ही रूखे होते हैं। गति में सहायता करने की स्थिति में संघटित नहीं हो सकते। उनकी सहायता के बिना जीव अलोक में गति नहीं कर सकते। असम्भाव्य कार्य (१) अजीव को जीव नहीं बनाया जा सकता। (२) जीव को अजीव नहीं बनाया जा सकता। (३) एक साथ दो भाषा नहीं बोली जा सकती। (v) अपने किए कर्मों के फलों को इच्छा-अधीन नहीं किया जा सकता। (५) परमाणु तोड़ा नहीं जा सकता। (६) अलोक में नहीं जाया जा सकता। सर्वश या विशिष्ट योगी के सिवाय कोई भी व्यक्ति इन तत्वों का साक्षात्कार नहीं कर सकता । (१) धर्म-(गति-तत्त्व) (२) अधर्म ( स्थिति-तत्त्व) (३) आकाश (४) शरीर रहित जीव (५) परमाणु (६) शब्द पारमार्षिक सत्ता(१) शाता का सतत अस्तित्व । (२)य का स्वतन्त्र अस्तित्व वस्त-शान पर निर्भर नहीं है। ()शाबा और और में कोष सम्बन्ध
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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