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जैन दर्शन के मौलिक तत्व
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दूसरा नक्शा ई० पू० ८ लाख से २ लाख वर्ष की स्थिति बतलाता है ... चीन, लाशा व हिमालय आदि सब उस समय समुद्र में थे दक्षिण की ओर वर्तमान हिमालय की चोटी का प्रादुर्भाव हो गया था। उसे उस समय भारतीय लोग 'उत्तरगिरि' कहते थे... |
तीसरा चित्र ई० पू० २ लाख से 50 हजार वर्ष तक की स्थिति बतलाता है। इस काल में जैसे-जैसे समुद्र सूखता गया वैसे-वैसे इस पर हिमपात होता गया। जिसे श्राजकल हिमालय के नाम से पुकारा जाता है।
चौथा चित्र ई० पू० ८० हजार से ६५६४ वर्ष पर्यन्त की स्थिति को बतलाता है । इन वर्षों में समुद्र घटते घटते पूर्व अक्षांश ७८.१२ व उत्तर अक्षांश ३८.५३ के प्रदेश में एक तालाब के रूप में वतलाया गया है। 1
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इन उद्धरणों से स्पष्ट विदित है कि आधुनिक भूगोल की प्राचीन विवरण ' तुलना करने में अनेक कठिनाइयों का सामना होना अवश्यंभावी है और सम्भवतः अनेक विषमताओं का कारण हो सकता है १२० ।
दस करोड़ वर्ष पुराने कीड़े की खोज ने भू-भाग के परिवर्तन पर नया प्रकाश डाला है। भारतीय जन्तु विद्यासमिति ( जूलोजिकल सर्वे ग्राफ इन्डिया ) के भूतपूर्व डाइरेक्टर डा० वी० एन० चोपड़ा को बनारस के कुत्रों में एक आदिम युग के कीड़े का पता चला जिसके पुरखे करीब १० करोड़ वर्ष पहिले पृथ्वी पर वास करते थे । वह कीड़ा एक प्रकार के झींगे ( केकड़े ) की शक्ल का है। यह शीरों के समान पारदर्शी है, और इसके १०० पैर हैं । यह कोड़ा कार में बहुत छोटा है ।
भू-मण्डल निर्माण के इतिहास में करीब १० करोड़ वर्ष पूर्व ( मेसोजोइक ) काल में यह कीड़ा पृथ्वी पर पाया जाता था । अभी तक इस किस्म के कीड़े केवल आस्ट्रेलिया, टैसमिनिया, न्यूजीलैंड तथा दक्षिणी अफ्रिका में देखे जाते हैं।
इस कीड़े के भारतवर्ष में प्राप्त होने से भू-विज्ञान वेत्ताओं का यह अनुमान सत्य मालूम पड़ता है कि अत्यन्त पुरातन काल में एक समय भारत, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रिका, अमेरिका, टैसमिनिया, न्यूजीलैंड और एशिया का दक्षिणी भाग एक साथ मिले हुए थे 1