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________________ २१८ ] जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व बाबा आदम के जमाने का १० करोड़ वर्ष बूढ़ा यह कीड़ा पृथ्वी की सतह के नीचे के पानी में रहता है और बरसात के दिनों में कुछों में पानी अधिक होने से इनके बन्धुत्रों की संख्या अधिक दिखाई पड़ती है। बरसात में कुत्रो में यह कीड़े इतने बढ़ जाते हैं कि कोई भी इन्हें आसानी से देख सकता है। बनारस छावनी के 'केशर महल' में नहाने के लिए पानी कुएँ से मशीन से पम्प किया जाता था वहाँ गुसलखाने ( स्नानागार ) के नहाने के टबों में भी ये कीड़े काफी संख्या में उपस्थित पाये गए । वह छोटा कीड़ा इस प्रकार सुन्दरता के साथ पृथ्वी के श्रादिम युग की कहानी और अमेरिका, आस्ट्रेलिया और भारत की प्राचीन एकता की कहानी भी बहुत पटु सुनाता है। "ऐसा प्रतीत होता है कि दक्षिण भारत और सुदूर पूर्व के ये द्वीप समूह किसी अतीत काल में अखण्ड और अविभक्त प्रदेश था १२१ भू-भाग के विविध परिवर्तनों को ध्यान में रखकर कुछ जैन मनीषियों ने श्रागमोक्त और वार्तमानिक भूगोल की संगति बिठाने का यत्न किया है। इसके लिए यशोविजयजी द्वारा सम्पादित संग्रहणी द्रष्टव्य है । कुछ विद्वानों ने इसके बारे में निम्नप्रकार की संगति बिठाई है : भरत क्षेत्र की सीमा पर जो हैमवत पर्वत है उससे महागंगा और महासिन्धु दो नदियां निकलकर भरत क्षेत्र में बहती हुई लवण समुद्र में गिरी है । जहाँ ये दोनों नदियां समुद्र में मिलती हैं वहाँ से लवण समुद्र का पानी आकर भरत क्षेत्र में भर गया है जो श्राज पांच महासागरों के नाम से पुकारा जाता है, तथा मध्य में अनेक द्वीप से बन गए हैं जो एशिया, अमेरिका आदि कहलाते हैं। इस प्रकार आज कल जितनी पृथ्वी जानने में आई है, वह सब भरत क्षेत्र में है । ऊपर के कथन से यह बात अच्छी तरह समझ में आ जाती है कि पृथ्वी इतनी बड़ी है कि इसमें एक-एक सूर्य-चन्द्रमा से काम नहीं चल सकता । केवल जम्बूद्वीप में ही दो सूर्य और दो चन्द्रमा हैं १२९ । कुछ दिन पहले जापान के किसी विज्ञान वेत्ता ने भी यही बात प्रगट की कि जब भरत और ऐरावत में दिन रहता है तब विदेहों में रात होती है। इस हिसाब से समस्त
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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