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जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व (२१५ अब से लेकर चतुर्यकाल के आदि तक की लगभग वर्ष-संख्या १४३ के आगे ६० शून्य लगाने से बनती है। अर्थात्-उपसागर की उत्पत्ति से जो भयानक परिवर्तन धरातल पर हुआ उसको इतना लम्बा काल बीत गया, और तब से भी अब तक और छोटे-छोटे परिवर्तन भी हुए ही होंगे। जिस भूमि को यह उप-समुद्र घेरे हुए है वहाँ पहले स्थल था-ऐसा पता आधुनिक भू-शास्त्रवेत्ताओं ने चलाया है जो 'गौंडवाना लैंड-सिद्धान्त (Gondwanaland Theory ) के नाम से सुप्रसिद्ध है। अभी इस गोंडवाना. लैंड के सम्बन्ध में जो विवाद ब्रिटिश ऐसोशिएसन की भू-गर्भ, जन्तु व वनस्पति-विज्ञान की सम्मिलित मीटिंग में हुश्रा है उसका मुख्य अंश हम पाठकों की जानकारी के लिए उधृत करते हैं।
सिद्धान्त इस प्रकार है कि किसी समय में, जिसकी काल-गणना शायद अभी तक नहीं की जा सकी। एक ऐसा द्वीप विद्यमान था जो दक्षिणी अमेरीका और अफ्रिका के वर्तमान द्वीपों को जोड़ता था और जहाँ श्राजकल दक्षिणी अटलांटिक महासागर स्थित है । इस खोए हुए द्वीप को गौंडवानालैंड के नाम से पुकारते हैं और इससे हमारे उप-सागर-उत्पत्ति सिद्धान्त की पुष्टि होती है :
---Professor Watson, President of the Zoology section, treated the question from the biological point of view. He traced certain marked resemblanoes in the reptile lye in each of two existing oontinents, quoting among other examples, the case of the deoynodon, the most characteristic of the gpakez of the Karroo, which was found also in South America, Madagasker, India and Australia. He went on to deduce from the peoular similarity in the flora, reptiles and glacial oonditions that there must have been some great equational conti-. nent between Africa and South America, possibly