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________________ २०81 जैन दर्शन के मौलिक तत्त्वे १-द्रव्य स्थानायु २-क्षेत्र स्थानायु ३-अवगाहन स्थानायु ४-भाव स्थानायु १-परमाणु परमाणुरूप में और स्कन्ध स्कन्धरूप में अवस्थित हैं, वह द्रव्य स्थानायु है। २-जिस आकाश-प्रदेश में परमाणु या स्कन्ध अवस्थित रहते हैं, उसका नाम है क्षेत्र स्थानायु। ३-परमाणु और स्कन्ध का नियत परिमाण में जो अवगाहन होता है, वह है अवगाहन स्थानायु। क्षेत्र और अवगाहन में इतना अन्तर है कि क्षेत्र का सम्बन्ध अाकाश प्रदेशों से है, वह परमाणु और स्कन्ध द्वारा अवगाढ़ होता है तथा अवगाहन का सम्बन्ध पुद्गल द्रव्य से है। तात्पर्य, कि उनका अमुक-परिमाण क्षेत्र में प्रसरण होता है। ४-परमाणु और स्कन्ध के स्पर्श, रस, गन्ध और वर्ण की परिणति को भाव स्थानायु कहा जाता है। परमाणुओं का श्रेणी-विभाग परमाणुओं की आठ मुख्य वर्गणाएं (Qualities) है:१-ौदारिक वर्गणा २- वैक्रिय वर्गणा ३-आहारक वर्गणा ४-तैजस वर्गणा ५- कार्मण वर्गणा ६-श्वासोछवास वर्गणा ७-वचन वर्गणा -मन वर्गणा औदारिक वर्गणा-स्थूल पुद्गल-पृथ्वी, पानी, अमि, वायु, वनस्पति और उस जीवों के शरीर-निर्माण योग्य पुद्गल समूह ।
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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