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जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
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पुद्गल की गति
परमाणु स्वयं गतिशील है। वह एक क्षण में लोक के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जो असंख्य योजन की दूरी पर है, चला जाता है। गति-परिणाम उसका स्वाभाविक धर्म है । धर्मास्तिकाय उसका प्रेरक नहीं, सिर्फ सहायक है । दूसरे शब्दों में गति का उपादान परमाणु स्वयं है । धर्मास्तिकाय तो उसका निमित्तमात्र है |
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परमाणु सैज ( सकम्प ) भी होता है" और अनेज ( श्रकम्प ) भी । कदाचित् वह चंचल होता है, कदाचित् नहीं। उनमें न तो निरन्तर कम्प-भाव रहता है और न निरन्तर अकम्प भाव भी । -स्कन्ध में कदाचित् कम्पन कदाचित् कम्पन होता है । वे द्वयंश होते हैं, इसलिए उनमें देश-कम्प और देश-प्रकम्प ऐसी स्थिति भी होती है 1 त्रिप्रदेशी स्कन्ध में कम्प - श्रकम्प की स्थिति द्विप्रदेशी स्कन्ध की तरह होती है। सिर्फ देश -कम्प के एक वचन और द्विवचन सम्बन्धी विकल्पों का भेद होता है । जैसे एक देश में कम्प होता है, देश में कम्प नहीं होता । देश में कम्प होता है, देशों (दो) में कम्प नहीं होता । देशों ( दो ) में कम्प होता है, देश में कम्प नहीं होता ।
चतुः प्रदेशी स्कन्ध में देश में कम्प, देश में अकम्प, देश में कम्प और देशों (दो) में कम्प, देशों (दो) में कम्प और देश में कम्प, देश में कम्प और देशों में अकम्प होता है ।
पाँच प्रदेश यावत् अनन्तप्रवेशी स्कन्ध की भी यही स्थिति है
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पुद्गल के आकार-प्रकार
परमाणु- पुद्गल नर्द्ध, मध्य और प्रदेश होते हैं | द्विप्रदेशी स्कन्ध सार्द्ध, श्रमध्य और सप्रदेश होते हैं 1 त्रिप्रवेशी स्कन्ध नर्द्ध, समध्य और सप्रदेश होते हैं ।
समसंख्यक परमाणु-स्कन्धों की स्थिति द्विप्रदेशी स्कन्ध की तरह होती है और विषम संख्यक परमाणु स्कन्धों की स्थिति त्रिप्रदेशी स्कन्ध की तरह । पुद्गल द्रव्य की चार प्रकार की स्थिति बतलाई गई है -