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________________ १९८] जैन दर्शन के मौलिक तत्व गुण वाला परमाणु एक गुण वाला। एक परमाणु में वर्ण से वर्णान्तर, गन्ध से गन्धान्तर, रस से रसान्तर और स्पर्श से स्पर्शान्तर होना जैन-दृष्टि-सम्मत है। एक गुण वाला पुद्गल यदि उसी रूप में रहे तो जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः असंख्य काल तक रह सकता है ७५ । द्विगुण से लेकर अनन्त गुण तक के परमाणु पुद्गलों के लिए यही नियम है। बाद में उनमें परिवर्तन अवश्य होता है। यह वर्ण विषयक नियम गन्ध, रस और स्पर्श पर भी लागू होता है। परमाणु की अतीन्द्रियता परमाणु इन्द्रियग्राय नहीं होता। फिर भी अमूर्त नहीं है, वह रूपी है । पारमार्थिक प्रत्यक्ष से वह देखा जाता है। परमाणु मूर्त होते हुए भी दृष्टिगोचर नहीं होता, इसका कारण है उसकी सूक्ष्मता। केवल-शान का विषय मूर्त और अमूर्त दोनों प्रकार के पदार्थ हैं । इसलिए केवली ( सर्वज्ञ और अतीन्द्रिय-द्रष्टा । तो परमाणु को जानते ही हैं; चाहे वे संसार-दशा में हो, चाहे सिद्ध हो । अकेवली यानी छमस्थ अथवा क्षायोपशमिक शानी-जिसका श्रावरण-विलय अपूर्ण है, परमाणु को जान भी सकता है, नहीं भी। अवधिशानी-रूपी द्रव्य विषयक प्रत्यक्ष वाला योगी उसे जान सकता है, इन्द्रिय प्रत्यक्ष वाला व्यक्ति नहीं जान सकता । एक प्राचीन श्लोक में उक्त लक्षण-दिशा का संकेत मिलता है - कारणमेव तदन्त्य, सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः । एकरसवर्णगन्धो, द्विस्पर्शः कार्यलिङ्गश्च ॥ परमाणुसमुदय-स्कन्ध और पारमाणविक जगत् यह दृश्य जगत्-पौद्गलिक जगत् परमाणुसंघटित है। परमाणुओं से स्कन्ध बनते हैं और स्कन्धों से स्थूल पदार्थ । पुद्गल में संघातक और विघातक -ये दोनों शक्तियाँ हैं। पुद्गल शब्द में ही 'पूरण और गलन' इन दोनों का मेल है । परमाणु के मेल से स्कन्ध बनता है और एक स्कन्ध के टूटने से भी अनेक स्कन्ध बन जाते हैं। यह गलन और मिलन की प्रक्रिया स्वाभाविक भी होती है और पानी के प्रयोग से भी। कारणकि पुद्गल की अवस्था
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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