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जैन दर्शन के मौलिक तत्व . [१९७ के उपलक्षणों में सन्देह हो सकता है, कारण कि विज्ञान के सूक्ष्म यन्त्रों में परमाणु की अविभाज्यता सुरक्षित नहीं है।
परमाणु अगर अविभाज्य न हो तो उसे परम+अणु नहीं कहा जा सकता। विशान-सम्मत परमाणु टूटता है, उसे भी हम अस्वीकार नहीं करते। इस समस्या के बीच हमें जैन-सूत्र अनुयोगद्वार में वर्णित परमाणु-द्विविधता का सहज स्मरण हो पाता है ७०
१ सूक्ष्म परमाणु । २ व्यावहारिक परमाणु।
सूक्ष्म परमाणु का स्वरूप वही है, जो कुछ ऊपर की पंक्तियों में बताया गया है। व्यावहारिक परमाणु अनन्त सूक्ष्म परमाणुओं के समुदय से बनता है | वस्तुवृत्त्या वह स्वयं परमाणु-पिंड है, फिर भी साधारण दृष्टि से ग्राह्य नहीं होता और साधारण अस्त्र-शस्त्र से तोड़ा नहीं जा सकता, थोड़े में उसकी परिणति सूक्ष्म होती है, इसलिए व्यवहारतः उसे परमाणु कहा गया है। विज्ञान के परमाणु की तुलना इस व्यावहारिक परमाणु से होती है। इसलिए परमाणु के टूटने की बात एक सीमा तक जैन-दृष्टि को भी स्वीकार्य है। पुद्गल के गुण
स्पर्श-शीत, उष्ण, रुक्ष, स्निग्ध, लघु, गुरु, मृदु और कर्कश । रस-श्राम्ल, मधुर, कटु, कपाय और तिक्त । गन्ध–सुगन्ध और दुर्गन्ध । वर्ण-कृष्ण, नील, रक्त, पीत और श्वेत । ये बीस पुद्गल के गुण हैं।
यद्यपि संस्थान-परिमंडल, वृत्त, त्र्यंश, चतुरंश आदि पुद्गल में ही होता है, फिर भी उसका गुण नहीं है ।
सूक्ष्म परमाणु द्रव्य रूप में निरवयव और अविभाज्य होते हुए भी पर्याय दृष्टि से वैसा नहीं है । उसमें वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श-ये चार गुण और अनन्त पर्याय होते हैं । एक परमाणु में एक वर्ण, एक गन्ध, एक रस और दो स्पर्श (शीत-उष्ण, स्निग्ध-रुक्ष, इन युगलों में से एक-एक) होते हैं। पर्याय की दृष्टि से एक गुण वाला परमाणु अनन्त गुण वाला हो जाता है और अनन्त