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जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
तत्त्व-संख्या में परमाणु की स्वतन्त्र गणना नहीं है। वह पुद्गल का ही एक विभाग है। पुद्गल के दो प्रकार बतलाए हैं । ७ :
१- परमाणु- पुद् गल ।
नो परमाणु-पुद् गल-द्वयणुक श्रादि स्कन्ध ।
के विषय में जैन तत्त्व - वेत्ताओं ने जो विवेचना और विश्लेषणा दी
पुद् गल है, उसमें उनकी मौलिकता सहज सिद्ध है ।
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यद्यपि कई पश्चिमी विद्वानों का खयाल है कि भारत में परमाणुवाद यूनान से आया, किन्तु यह सही नहीं। यूनान में परमाणुवाद का जन्म - दाता डिमोक्रिटस हुआ है । उसके परमाणुवाद से जैनों का परमाणुवाद बहुतांश में भिन्न है, मौलिकता की दृष्टि से सर्वथा भिन्न है। जैन दृष्टि के अनुसार परमाणु चेतन का प्रतिपक्षी है, जबकि डिमोक्रिटस् के मतानुसार श्रात्म-सूक्ष्म परमाणुओं का ही विकार है ।
कई भारतीय विद्वान् परमाणुवाद को कणाद ऋषि की उपज मानते हैं किन्तु तटस्थ दृष्टि से देखा जाए तो वैशेपिकों का परमाणुवाद जैन-परमाणुवाद से पहले का नहीं है और न जैनों की तरह वैशेषिकों ने उसके विभिन्न पहलुओं पर वैज्ञानिक प्रकाश ही डाला है। इस विषय में 'दर्शन - शास्त्र का इतिहास' पुस्तक के लेखक का मत मननीय है ६० । उन्होंने लिखा है कि भारतवर्ष में परमाणुवाद के सिद्धान्त को जन्म देने का श्रेय जैन दर्शन को मिलना चाहिए । उपनिषद में अणु शब्द का प्रयोग हुआ है, जैसे – 'अणोरणीयान् महतो महीयान्', किन्तु परमाणुवाद नाम की कोई वस्तु उनमें नहीं पाई जाती । वैशेषिकों का परमाणुवाद शायद इतना पुराना नहीं है ।
ई० पू० के जैन-सूत्रों एवं उत्तरवर्ती साहित्य में परमाणु के स्वरूप और कार्य का सूक्ष्मतम अन्वेषण परमाणुवाद के विद्यार्थी के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
परमाणु का स्वरूप
जैन - परिभाषा के अनुसार श्रछेय, अभेद्य, श्रग्राह्य, श्रदाय और निर्विभागी पुद्गल को परमाणु कहा जाता है "। आधुनिक विज्ञान के विद्यार्थी को परमाणु