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३३ मान-सज्वलन ३४ माया सज्वलन ३५ लोभ-सञ्ज्वलन ३६ स्त्री-वेद
१२२
४० कोटा कोटि सागर ४० कोटा कोटि सागर ४० कोटा कोटि सागर १५ कोटा कोटि सागर
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३७ १२
पुरुष-वेद नपुंसक वेद, अरति, भय, शोक, दुगुंछ।
१ मास अर्द्ध-मास अन्तर् मुहूर्त एक सागर के ७ भाग में पल्य का असंख्यातवां भाग कम। ८ वर्ष एक सागर के भाग में पल्य का असंख्यातवां भाग कम। एक सागर के भाग में पल्य का असंख्यातवा भाग कम। १० हजारवर्ष अन्तर्-मुहूर्त अधिक
१० कोटा कोटि सागर २० कोटा कोटि सागर
- ३ .
४ हास्य, रति
१० कोटा कोटि सागर
जैन दर्शन के मौलिक तत्त्व
४६
नैरयिकायुष, देवायुष
४८ तिर्यञ्चायुष, मनुष्यायुष
अन्तर मुहूर्त
३३ सागर क्रोड पूर्व का तीसरा भाग अधिक। ३ पल्य और क्रोड पूर्व का तीसरा माग अधिक। २० कोटा कोटि सागर
५४ नैरविकगतिनाम, नरकानुपूर्वीनाम,
हजार सागर के 3 वें भाग में पल्य का , वैयिक चतुष्क (शरीर, अंगोपांग, बंधन, असंख्याता माग कम ।
संघातन)