________________
कर्म की उत्तर-प्रकृतियों और उनकी स्थिति कर्म को प्रकृतियां जघन्य-स्थिति
उत्कृष्ट-स्थिति ५ शानावरणीय
अन्तर् मुहूर्त
३० कोटा कोटि सागर १. निद्रापंचक
एक सागर के 3 वें भाग में पल्य का ३० कोटा कोटि सागर
असंख्याता माग कम। १४ दर्शन-चतुष्क
३० कोटा कोटि सागर १५ सात-वेदनीय (ईपथिक, सम्पराय) २ समय
२ समय १६ असात-वेदनीय
एक सागर के । वे भाग में
पल्य का असंख्यातवां भाग कम। ३० कोटा कोटि सागर १७ सम्यक्त्व-वेदनीय
अन्तर्-मुहूर्त
कुछ अधिक ६६ सागर से १८ मिथ्यात्व-वेदनीय
एक सागर में पल्य का असंख्यातवां भाग ७० कोटा कोटि सागर
जैन दर्शन के मौलिक तत्व
कम ।
अन्तर् मुहूर्त ४० कोटा कोटि सागर
१६ सम्यक्त्व-मिथ्यात्व वेदनीय
अन्तर-मुहूर्त ३१ कषाय-द्वादशक (अनन्तानुबन्ध, अप्रत्या- एक सागर के वे भाग में
ख्यान, क्रोध, मान, माया, लोम) पल्य का असंख्यातवां भाग कम ३२ क्रोध-सज्वलन
११
४. कोटा कोटि सागर
२मास