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१२०] जैन दर्शन के मौलिक तत्व
--गौत्र(१) उच गोत्र-इसके उदय से सम्मान व प्रतिष्ठा मिलती है।
(क) जाति-उच्च-गोत्र-मातृपक्षीय सम्मान । (ख) कुल , "-पितृ " " (ग) बल , , (घ) रूप , "-रूप , " () तप , ,-तप , , (च) श्रुत " "-शान " ,
(छ) लाभ , ,-प्राप्ति , , . (ज) ऐश्वर्य ,, ,-ऐश्वयं , , (२) नीच गोर-इसके उदय से असम्मान व अप्रतिष्ठा मिलती है।
(क ) जाति नीच गोत्र-मातृपक्षीय सम्मान । (ख ) कुल , ,-पितृ , , (ग) बल , "-बल " "
"
-तप
"
(क) तप , , (च) श्रुत , ,(छ) लाम , ,-प्राप्ति,, ,
(ज) ऐश्वर्य ,, ,-ऐश्वयं,, , ८-अन्तराय-इसके उदय का क्रियात्मक शक्ति पर प्रभाव होता है। (क) दान-अन्तराय-इसके उदय से सामग्री की पूर्णता होने पर भी
दान नहीं दिया जा सकता। (ख) लाम अन्तराय-इसके उदय से लाभ नहीं होता। (ग) भोग अन्तराय-इसके उदय से भोग नहीं होता।
(घ) उपभोग अन्तराय-इसके उदय से उपभोग नहीं होता। . () वीर्य अन्तरांय-इसके उदय से सामर्थ्य का प्रयोग नहीं किया जा