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जैन दर्शन के मौलिक तव
११९ (२२) स्थावर नाम-इसके उदय से जीव स्थिर (इच्छा पूर्वक गति न करने
वाले) होते हैं। (२३) सूक्ष्म नाम-इस कर्म के उदय से जीव को सूक्ष्म (अतीन्द्रिय)
शरीर मिलता है। (२४) वादर नाम--इस कर्म के उदय से जीव को स्थूल शरीर मिलता है २८ । (२५) पर्याप्त-नाम-इसके उदय से जीव स्वयोग्य पर्याप्तियां पूर्ण करते हैं। (२६) अपर्याप्त-नाम-इसके उदय से जीव स्वयोग्य पर्याप्तियां पूर्ण नहीं
करते हैं। (२७) साधारण-शरीर-नाम-इसके उदय से अनन्त जीवों को एक शरीर
मिलता है। (२८) प्रत्येक-शरीर-नाम--इसके उदय से प्रत्येक जीव को अपना स्वतन्त्र
शरीर मिलता है। ( २६) स्थिर-नाम-इसके उदय से शरीर के अवयव स्थिर होते हैं। (३०) अस्थिर-नाम-इसके उदय से शरीर के अवयव अस्थिर होते है। (३१) शुभ नाम-इसके उदय से नाभि के ऊपर के अवयव शुभ होते हैं। ( ३२ ) अशुभ-नाम-इसके उदय से नाभि के नीचे के अवयव अशुभ
होते हैं । (३३) मुभग-नाम-इसके उदय से किसी प्रकार का उपकार किए बिना व
सम्बन्ध के बिना भी जीव दूसरों को प्रिय लगता है। (३४) दुभंग नाम-इसके उदय से उपकारक व सम्बन्धी भी अप्रिय लगते हैं। (३५) मुस्बर-नाम-इसके उदय से जीव का स्वर प्रीतिकारक होता है। (२६) दुःस्वर नाम-इसके उदय से जीव का स्वर अप्रीतिकारक होता है। (३७) आदेय-नाम-इसके उदय से जीव का वचन मान्य होता है। (३८) अनादेय-नाम-~-इसके उदय से जीव का वचन युक्तिपूर्ण होते हुए भी
मान्य नहीं होता। (३६) यशकीर्ति-नाम-यश और कीर्ति के हेतुभूत कर्म-पुद्गल । (४०) अयशकीर्तिनाम-अयश और अकीर्वि के हेतुभूत कर्म-पुदगल । (१) निर्माण-नाम-अवयवों के व्यवस्थित निर्माण के हेतुभूत कर्म-पुदराला । (४२) तीर्थकर-नाम-तीर्थकर पद की प्राप्ति का निमित्त भूत कर्म।