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जैन दर्शन के मौलिक तस्व
(१४) उपघात, नाम -- इस कर्म के उदय से विकृत बने हुए अपने ही अवयवों
से जीव क्लेश पाता है। ( अथवा ) इसके उदय से जीव श्रात्म-हत्या करता है
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(१५) पराघात - नाम - इसके उदय से जीव प्रतिपक्षी और प्रतिवादी द्वारा अपराजेय होता है।
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(१६) श्रनुपूर्वी नाम २३ - विश्रेणि स्थित जन्मस्थान की प्राप्ति का हेतुभूत कर्म |
(क) नरक - श्रानुपूर्वी - नाम - विश्रेणि स्थित नरक सम्बन्धी जन्मस्थान की प्राप्ति का हेतुभूत कर्म ।
(ख) तिर्यचानुपूर्वी नाम - विश्रेणि स्थित तिर्यच सम्बन्धी जन्मस्थान की प्राप्ति का हेतुभूत कर्म ।
(ग) मनुष्य - श्रानुपूर्वी - नाम - विश्रेणि स्थित मनुष्य-सम्बन्धी जन्मस्थान की प्राप्ति का हेतुभूत कर्म ।
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(घ) देव आनुपूर्वी - नाम - त्रिश्रेणि स्थित देव-सम्बन्धी जन्मस्थान की प्राप्ति का हेतुभूत कर्म ।
(१७) उच्छवास - नाम -- इसके उदय से जीव श्वास- उच्छ्वास लेता है । (१८) आतप नाम २४ इसके उदय से शरीर में से उष्ण प्रकाश
निकलता है ।
(१६) उद्योत - नाम २५
( २० ) विहायोगति नाम पड़ता है ।
इसके उदय से शरीर में से शीत- प्रकाश निकलता है।
इसके उदय का जीव की चाल पर प्रभाव
( क ) प्रशस्त विहायोगति नाम- इसके उदय से जीव की चाल श्रेष्ठ
होती है
( ख ) प्रशस्त विहायोगति नाम- इसके उदय से जीव की चाल खराब
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होती है।
(२१) त्रस नाम- - इसके उदय से जीव चर ( इच्छापूर्वक गति करने वाले ) होते हैं।.