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जैन दर्शन के मौलिक तत्व
का वेष्टन हो, चौपी हड्डी की कील उन तीनों को मेद कर रही हुई हो-ऐसे सुदृढ़तम अस्थिबन्धन का नाम 'वज्र ऋषभ नाराच संहनन' है ।
(ख) ऋषभनाराच संहनन नाम — इस संहनन के हेतुभूत कर्म-पुद्गल, "ऋषभनाराच संहनन" में हड्डियों की आंटी और वेष्टन होता है, कील नहीं होती। यह हढ़तर है ।
(ग) नाराच संहनन नाम --- इस संहनन के हेतुभूत कर्म-पुद्गल । 'नाराचसंहनन' में केवल हड्डियों की श्रांटी होती है, वेष्टन और कील नहीं होती । (घ) अर्धनाराच संहनन नाम - इस संहनन के हेतुभूत कर्म-पुद्गल । 'अर्धनाराच संहनन' में हड्डी का एक छोर मर्कट-बन्ध से बंधा हुआ और दूसरा छोर कील से मिदा हुआ होता है ।
(ङ) कीलिका—संहनन - नाम - इस संहनन के हेतुभूत कर्म - पुद्गल । 'कीलिका संहनन, में हड्डियां केवल कील से जुड़ी हुई होती हैं।
(च) सेवार्त संहनन नाम - इस संहनन के हेतुभूत कर्म-पुद्गल । 'सेवार्त संहनन' में केवल हड्डियां ही आपस में जुड़ी हुई होती हैं।
८- संस्थान - नाम- इसके उदय का शरीर की आकृति रचना पर प्रभाव होता है इसके हेतुभूत कर्म पुद्गल ।
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( १ ) समचतुरस्र-संस्थान--- इसके हेतुभूत कर्म पुद्गल । पालथी मार कर बैठे हुये व्यक्ति के चारों कोण सम होते हैं। वह 'सम चतुरस संस्थान' है। ( २ ) न्यग्रोध-परिमंडल- संस्थान - नाम -- इसके हेतुभूत कर्म- पुद्गल । नाभि से ऊपर के अवयव पूर्ण और नीचे के अवयव प्रमाणहीन होते हैं, वह 'न्यग्रोध-परिमंडल संस्थान' है 1
( ३ ) सादि संस्थान नाम --- इसके हेतुभूत कर्म-पुद्गल । नाभि से ऊपर के श्रवयव प्रमाण-हीन और नीचे के अवयव पूर्ण होते हैं, वह सादिसंस्थान' है ।
(४) वामन संस्थान नाम - इसके हेतुभूत कर्म - पुद्गल । 'बामन- संस्थान'बौना ।
(५) कुब्ज संस्थान नाम- इसके हेतुभूत कर्म- पुद्गल । 'कुन्ज संस्थान'
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