SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - (१०) औदारिक तेजस कार्मण बन्धन नाम । (११) वैक्रिय " (१२) आहारक (१३) तैजस - (१४) तैजस कार्मण (१५) कार्मण कार्मण जैन दर्शन के मौलिक तत्व "" "" "" "9 39 33 "" "" "" "" "" "" 1 ११५ " श्रदारिक, वैक्रिय और आहारक —ये तीन शरीर परस्पर विरोधी होते हैं। इसलिए इनके पुद्गलों का श्रापस में सम्बन्ध नहीं होता । ( ६ ) शरीर संघातन नाम " शरीर के गृहीत और गृह्यमाण पुद्गलों की यथोचित व्यवस्था या संघात के निमित्त कर्म-पुद्गल । ( क ) औदारिक-शरीर संघातन नाम- इस शरीर के गृहीत और गृह्यमाण पुद्गलों की यथोचित व्यवस्था या संघात के निमित्त कर्म-पुद्गल । (ख) वैकिय-शरीर संघातन - नाम - इस शरीर के गृहीत और गृह्यमाण पुद्गलों की यथोचित व्यवस्था या संघात के निमित्त कर्म- पुद्गल । (ग) आहारक- शरीर संघातन नाम -- इस शरीर के गृहीत और गृह्यमाण पुद्गलों की यथोचित व्यवस्था या संघात के निमित्त कर्म- पुद्गल । (घ) वैजस-शरीर संघातन नाम- इस शरीर के गृहीत और गृह्यमाण पुद्गलों की यथोचित व्यवस्था या संघात के निमित्त कर्म-पुद्गल । (ङ) कार्मण - शरीर संघातन नाम- इस शरीर के गृहीत और गृपमा पुद्गलों की यथोचित व्यवस्था या संघातन के निमित कर्म-पुद्गल । ७ --- सहनन - नाम --- इसके उदय का 'हड्डियों की व्यवस्था' पर प्रभाव होता है इसके हेतुभूत कर्म पुदगल " । ३२ (क) वज्रऋषभ नाराच सहनन नाम इस संहनन के हेतुभूत कर्म- पुद्गल वकील, ऋषभ वेष्टन-पर, नाराच मर्कट-बन्ध दोनों और श्रापस में एक दूसरे को बांधे हुए हों, वैसी प्राकृति, श्रांटी लगाए हुये हो वैसी आकृति, बन्दर - का बच्चा जैसे अपनी मां की छाती से चिपका हा ही बैसी प्राकृति, जिसमें सन्धि की दोनों हड्डियां आपस में ब्रांटी लगाए हुये हों, उन पर तीसरी हड्डी
SR No.010093
Book TitleJain Darshan ke Maulik Tattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmalmuni, Chhaganlal Shastri
PublisherMotilal Bengani Charitable Trust Calcutta
Publication Year1990
Total Pages543
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy