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जैन दर्शन के मौलिक तत्व · (२) भुत-शानावरण--शब्द और अर्थ की पर्यालोचना से होने वाले शान को
आवृत्त करने वाले कर्म-पुद्गल । (३) अवधि-शानावरण-मूर्त द्रव्य-पुद्गल को साक्षात् जानने वाले ज्ञान को
आवृत करने वाले कर्म-पुद्गल । (४) मनः पर्याय-शानावरण-दूसरों के गन की पर्यायों को साक्षात् जानने
वाले शान को श्रावृत्त करने वाले कर्म-पुद्गल। (५) केवल ज्ञानावरण-सर्व द्रव्य और पर्यायों को साक्षात् जानने वाले ज्ञान
को प्राप्त करने वाले कर्म-पुद्गल।। २-दर्शनावरण-सामान्य बोध को आवृत करने वाले कर्म-पुद्गल । (१) चक्षु दर्शनावरण-चतु के द्वारा होने वाले दर्शन (सामान्य ग्रहण ) का
आवरण। (२) अचक्षु दर्शनावरण-चक्षु के सिवाय शेष इन्द्रिय और मन से होने
वाले दर्शन ( सामान्य ग्रहण ) का आवरण । (३) अवधि-दर्शनावरण-मूर्त द्रव्यों के साक्षात् दर्शन ( सामान्य ग्रहण ) का
आवरण। (४) केवल-दर्शनावरण -सर्व-द्रव्य-पर्यायों के साक्षात् दर्शन (मामान्य ग्रहण )
का आवरण। (५) निद्रा-सामान्य नींद (मोया हुश्रा व्यक्ति मुख से जाग जाए, वह
नींद)
(६) निद्रानिद्रा-घोर नींद ( सोया हुश्रा व्यक्ति कठिनाई से जागे, वह
नींद)
(७) प्रचला-खड़े या बैठे हुए जो नींद आये। (८) प्रचला-प्रचला-चलते-फिरते जो नींद आए । (६) स्त्यानर्षि-(स्त्यान-द्धि) संकल्प किये हुए कार्य को नींद में कर
डाले, वैसी प्रगाढतम नींद। ३-वेदनीय-अनुभूति के निमित्त कर्म-पुदगल :(१) सात वेदनीय-सुखानुभूति का निमित्त
(क) मनोश शब्द, (ख) मनोज रूप, (ग) मनोज गन्ध, (घ) मनोज्ञ रस,