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डा० मणनमिधः
केनीयसंस्कृतविद्यापीठ प्राचार्यः
तिरुपति
२१ जुलाई १९७३ नव-दिल्लीस्थश्रीमहावीरविश्वविद्यापीठस्य जैनदर्शनविभागाध्यक्षेण जैनदर्शनव्याकरण-पुराणेतिहासाचार्य विद्यावारिधिडा श्रीमुक्ताप्रसादपटरियेत्युपाह वेन विलिखितः शोधप्रबन्धो "जैनदर्शन आत्मद्रव्यविवेचनम्" प्राच्यविद्याशोध-अकादम्या: शोधग्रन्थमालायां प्रकाशित: सम्यगवलोकितो मया।
प्राचविद्यानुसन्धासनरण्यामात्मविषयकाहंसिद्धान्तविवेचनविधौ मौलिक्याधुनिक्या च पद्धत्याऽऽश्लिष्टोऽयं प्रबधो भगवतो महावीरस्य २५०० तमे निर्वाणमहोत्सवारम्भे प्राच्यविद्याविशेर्जन विद्याविशारदेश्चापि विशेषतः समारतो भविष्यतीति विश्वसिमि।
मणममिक्षः
PRAKRIT VIDYA MANDALA L. D. Institute of Indology
Near Gujarat University Ahmedabad-9 (India)
दिनांक १५-६-७३
स्नेही भाई श्री,
प्रणाम,
आपका पत्र और थीसिस मिले थे। मैंने ऊपर-ऊपर से आपका थीसिस पढा है । जो कुछ पढ़ा है, उसी से कह सकता हूँ कि आपने आत्मद्रव्य के विषय मे तुलनात्मक दृष्टि से जो विवेचन किया है, वह आपकी तद्विषयक विद्वत्ता को प्रकट करता है। आपकी सशोधन करने की शक्ति इसमे व्यक्त हुई है। अब इतना ही और कहना है कि इसे और बढ़ावे और नये-नये विषयो को लेकर कुछ लिखते रहें। आप-जैसे युवको को अब आगे आकर सशोधन-क्षेत्र में प्रतिष्ठा जमानी चाहिए। आपको इसी में यश और कीर्ति तथा अर्थ-प्राप्ति भी होगी। इस क्षेत्र की उपेक्षा कर केवल अध्ययन में न लगें।
प्रसन्न होवें
भवदीय बलसुल मालवणियां
(निवेशक)