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जैन-भक्तिकान्यकी पृष्ठभूमि
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जन्मोत्सवपर इन्द्रका नृत्य
तीर्थकरके जन्म-दिवसपर जन्मोत्सव मनानेका रिवाज़ उतना ही प्राचीन है, जितना तीर्थंकरोंका इतिहास । इतिहासज्ञोंने, २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथका समय, ईसासे ८५० वर्ष पूर्व निर्धारित किया है। अतः जन्मोत्सव इतना पुराना तो माना ही जा सकता है।
उपलब्ध साहित्यमें विमलसूरि ( वि० सं० ६.) का 'पउमचरिय' सबसे प्राचीन ग्रन्थ है, जिसमें तीर्थकरके जन्मोत्सवका वर्णन है। रविषेण (वि. सं० ७३३ ) के पद्मचरित, स्वयम्भू ( आठवीं शताब्दी ईसवी ) के पउमचरिउ, आचार्य जिनसेन ( ८००-८८० ईसवी ) के हरिवंशपुराण, भगवज्जिनसेनाचार्य ( ९वीं शताब्दी विक्रम ) के आदिपुराण', गुणभद्राचार्य ( ९वीं शताब्दी विक्रम ) १. jacobi s. B. E. Vol. XLV. p. 122.
and Cambridge History of India, Vol. I. E.J. Rapson Edited, S. Chand and Co, Delhi, 1955, p. 137.
and The Age of Imperial Unity, R. C, Majumdar Edited, Bhartiya VidyaBhavan, Bombay, Second Edition, 1953, p. 411. पंचेव वासया दुसमाए तीसवरससंजुत्ता। बीरे सिबिमुवगए तमो निबद्ध इमं चरियं ॥ विमलसूरि, पउमचरिय : जैनधर्मप्रसारक समा, भावनगर, डॉ. याकोबी
सम्पादित, १९१४ ई०, १०३वाँ पथ। ३. द्विशताभ्यधिके समासहस्त्रे समतीतेऽध चतुर्थवर्षयुक्त।
जिनभास्कर-वईमानसिद्धे चरितं पनमुनेरिदं निबद्धम् ॥
रविषेण, पप्रचरित : माणिकचन्द्र जैन ग्रन्थमाला, बम्बई, १८५वाँ श्लोक । ४. श्री देवेन्द्रकुमार जैनके हिन्दी अनुवादसहित, भारतीय ज्ञानपीठ, काशीसे
तीन भागोंमें प्रकाशित हुआ है। ५. माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमाला, संख्या ३२, ३३ पर, ६० दरवारीलाल
न्यायतीर्थ, साहित्यरस्नके द्वारा सम्पादित होकर प्रकाशित हो चुका है। ६. वह पुराण दो मागोंमें, पं० पनालाल जैन साहित्याचार्यके सम्पादन और
हिन्दा-अनुवाद के साथ, भारतीय ज्ञानपीठ, काशीसे, वि० सं० २००७ में प्रकाशित हुआ है।