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जैन-मफिके भंग
घोषसूरि का लौकान्तिकदेवस्तवन प्राकृत में है और बहुत ही प्रसिद्ध है । श्री जिनप्रभाचार्यका जिनराजस्तव और पद्मनन्दीका जिनवरदर्शनस्तवन प्राकृत गाथाओं में लिखे गये थे । पाटण भण्डारको ग्रन्थसूची में प्राकृतके ऋषभजिन स्तवनम् [ पृष्ठ १७७ ], ऋषिमण्डलस्तवः [ १२१], चतुर्विंशतिस्तव: [ २९५ ], देवेन्द्रस्तव: [६० ], नयगमस्तवः [ १४६ ], नेमिनाथस्तवनम् [ १७७ ] वीरजिनस्तव: [ ६० ], शाश्वत चैत्यस्तवः [ १५३ ], साधारणस्तवः [ १०३ ] और स्थानकस्तवनम् [१३४] का विशिष्ट रूपसे उल्लेख हुआ है ।
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ऐसे स्तवन भी उपलब्ध हुए हैं, जिनका प्रत्येक पद्य दूसरे पद्य से भिन्न भाषामें रचा गया । उनके रचयिता अनेक भाषाओंके प्रौढ़ विद्वान् थे । श्री धर्मवर्धन [ १२वीं शती ईसवी ] के 'षड्भाषामय पार्श्वनाथस्तवन' में श्री जिनपद्मसूरि [१३२५-४० ईसवी ] के 'षड्भाषाविभूषितशान्तिनाथस्तवन' में और जयचन्द्रसूरिके शिष्य जिनकीर्ति [ १५वीं शती ईसवी ] के 'षड्भाषामयस्तव' में संस्कृत; महाराष्ट्री, मागधी, शौरसेनी, पैशाची और अपभ्रंशका प्रयोग हुआ है । खरतरगच्छके जिनप्रभसूरिका भी 'षड्भाषास्तव' पाया जाता है, जो भस्मी मानिक बम्बई से प्रकाशित हो चुका है । 'सोपारकस्तवनम्' एक ऐसा स्तवन है, जिसके प्रत्येक पद्य के लिए पृथक छन्दका प्रयोग हुआ है और इस प्रकार ३२ पद्योंके लिए ३२ छन्द अपनाये गये हैं। मेरुनन्दनोपाध्यायका 'अजितशान्तिस्तवनम्' अपभ्रंश है। श्री जयकीर्तिसूरिका पार्श्वदेवस्तवनम् भी अपभ्रंशमें ही है । सूरि जीका समय १४३३ - १५०० विक्रम माना जाता है। श्री सोमसुन्दर सूरि
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१. देखिए वही : 'ज' परिशिष्टमें प्रकाशित ।
२. देखिए Descriptive Catalogue of Manuscripts of the Jain Bhandaras at Patan, Lalchandra Bhagvandas Gandhi Edited, Oriental Institute Baroda, Vol. 1, 1937 A. D. ३. Dr. Winternitz, History of Indian Literature, Vol. II, p. 558. -
४. जैनस्तोत्रसमुच्चय : मुनि चतुरविजय सम्पादित, बम्बई, १९२८ ईसवी, पृ० ७-१४ तक प्रकाशित ।
जैनस्तोत्रसंदोह : : प्रथम भाग चतुरविजय सम्पादित, अहमदाबाद,
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प्रस्तावना, पृ० ७३ ।
६. देखिए वही : द्वितीय भाग, पृ० १५९ पर प्रकाशित ।
७. देखिए वही : द्वितीय भाग, गुजराती प्रस्तावना, पृ० ५९ ।
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