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__जैन-मक्तिकाम्यकी पृष्ठभूमि ने सीमंधरजिनस्तवनका अपभ्रंशमें निर्माण किया था। सोमसुन्दरसूरि [१५वों शताब्दी विक्रम ] का पार्श्वजिनस्तवन भी प्रसिद्ध है। __ श्री सिद्धसेनसूरिने शाश्वतजिनस्तव और शाश्वतजिनप्रतिमास्तवनको प्राकृतमें रचना की थी। श्री नन्दिसेनने अजितशान्तिस्तवका प्राकृतके ४० पद्योंमें निर्माण किया था, जिसपर श्री जिनप्रभसूरिने वि. सं. १३६५ में बोध-दीपिका नामको टीका लिखी थी। डॉ. विण्टरनित्सने भाषाके आधारपर श्री नन्दिसेनका समय विक्रमको नौवीं शताब्दोसे पूर्व अनुमान किया है। श्री जिनवल्लभसूरि [ १२वीं शतीका पूर्वार्ध ] ने भी अजितशान्तिस्तवकी प्राकृतके १७ पद्योंमें रचना की थी। इस स्तवनको उल्लासिखमात्य भी कहते हैं। श्री जिनदत्त सूरिका श्रुत-स्तव बहुत प्रसिद्ध है। श्री मुनिचन्दसूरि [ ११२२ ईसवी ] ने तीर्थमालास्तवन लिखा, जिसमें १११ अथवा ११२ प्राकृतकी गाथाएं हैं । श्री देवेन्द्रसूरिने चत्तारिअट्ठस्तवनं [ ११५ गाथाएँ ], सम्य. क्त्वस्वरूपस्तवः [ २५ गाथाएँ ], चैत्यप्रतिकृतिस्तवनं [ सावचूरिक ] और शाश्वतबिम्बसंख्यास्तवनं [ २४ गाथाएँ ] की रचना की थी। मुनि चतुरविजयजीने इनका समय विक्रमकी तेरहवीं शताब्दी निर्धारित किया है। श्री धर्म१. जैनस्तोत्रसंदोह : प्रथम भाग, चतुरविजय सम्पादित, अहमदाबाद,
पृ० ३४० पर प्रकाशित । २. देखिए वही : द्वितीय माग, चतुरविजय सम्पादित, अहमदाबाद, पृ.१९८
पर प्रकाशित । ३. Jina Ratna Kosa, Vol. I, H. D. Velankar Edited, Bhan
__darkar Oriental Research Institute, Poona; 1944, p. 382. ४. यह स्तव गोविन्दाचार्य और जिनप्रमसूरिको टीकाओंके साथ, देवचन्द ___लालमाई पुस्तकोद्धार फण्ड, सूरतसे प्रकाशित हो चुका है। __Dr. Winternitz; History of Indian Literature Vol. II,
p. 554. ६. जैन ग्रन्थ और ग्रन्थकार : फतेहचन्द्र बेलानी सम्पादित, जैन संस्कृति
संशोधन मण्डल, काशी, १९५०, पृष्ठ १६ । ७. अगरचन्द नाहटा, युगप्रधान श्री जिनदत्तसूरि : मल्लिकलेन कलकत्ता,
वि. सं. २००३, पृष्ट १०५। तेन निर्णीयते निर्विरोधं सत्तासमयोऽस्य विक्रमीयत्रयोदशशताब्दी रूप एव । जैनस्तोत्रसंदोह : प्रथम भाग, चतुरविजय सम्पादित, अहमदाबाद, प्रस्तावना, पृष्ठ ५५।