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जैन-मक्तिकाम्यकी एडभूमि भक्त भी अपना मन पंचपरमेष्ठीमें तल्लीन करता है, अतः दोनों अवस्याओंमें कोई अन्तर नहीं है । आचार्य कुन्दकुन्दने प्राकृतमें और आचार्य पूज्यपादने संस्कृतमें समाधि भक्तिको रचना की है। इस भक्तिमें समाधि, समाधिस्थों और समाधि स्थलोंके प्रति सेवा, श्रद्धा और आदर-सत्कारका भाव प्रकट किया गया है।
१. दोनों ही की भक्तियाँ, दशभक्ति : शोलापुर और दशमस्यादिसंग्रह :
सलाल [साबरकाँठी ], में प्रकाशित हो चुकी है। ..