________________
१०१
जैन-मक्तिके भेद आयी हुई विद्या' के रूपमें प्रतिष्ठित हों।
उपलब्ध ऐतिहासिक सामग्रोके आधारपर, णमोकार मंत्रका प्राचीनतम उल्लेख हायोगुम्फके शिलालेखमें प्राप्त होता है , जिसके निर्माता सम्राट् खारबेल ईसासे १७० वर्ष पूर्व हुए हैं ।
लिखित साहित्यका जहाँतक सम्बन्ध है, आचार्य पुष्पदन्त भूतबलिका षट्खण्डागम सबसे पहला ग्रन्थ है, जिसका आरम्भ णमोकार मंत्रके मंगलाचरणसे हुआ है । पुष्पदन्त भूतबलिका समय ईसाको दूसरी शताब्दी माना जाता है ।
णमोकार मंत्रमें अपूर्व शक्ति है। उसके उच्चारणसे इहलौकिक वैभव तो मिलते ही हैं, पारलौकिक सिद्धि भी प्राप्त होती है। भद्रबाह स्वामीने उपसर्गहर स्तोत्रमें लिखा है, "पञ्चनमस्कार मन्त्र से, चिन्तामणि और कल्पवृक्षसे भी अधिक महत्त्वशाली सम्यग्दर्शन प्राप्त होता है, जिसके कारण जीवको मोक्ष मिलता है। आचार्य कुन्दकुन्दका विश्वास है कि णमोकार मन्त्रसे, भव-भवमें सुख मिलता
१. "नमो अरहंतानं [1] नमो सबसिधानं []"
अर्थात् अरहन्तोंको नमस्कार, सब सिद्धोंको नमस्कार । देखिए खुशालचन्द्र गोरावाला, कलिङ्गाधिपति खारबेल, हाथीगुम्फ शिलालेखका मूल, जेनसिद्धान्त भास्कर : जैन सिद्धान्त भवन आरा, भाग १५,
किरण २, जनवरी १९४९, पृष्ट १२२ । २. V. A. Smith, Early History of India, Oxford, 1908, p. • 38, N. I. ३. यह अन्ध श्री वीरसेनाचार्यकी संस्कृत टीकाके साथ, डॉ. होरालाल जैन
के सम्पादनमें अमरावतीसे वि० सं० १९९६में प्रकाशित हो चुका है। ४. देखिए सुमेरचन्द दिवाकर, महाबन्ध ( धवल सिद्धान्त ) : प्रथम भाग,
प्रस्तावना, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, मई १९४७, पृष्ठ २२ । ५. सुह सम्मत्ते लढे चिंतामणिकप्पपायबमाहिए ।
पावंति अविग्घेणं जीवा अपरामरं ठाणं ॥ देखिए जैनस्तोत्र सन्दोह : भाग २, मुनि चतुरविजय सम्पादित, सारामाई मणिलाल नवाब प्रकाशित, अहमदाबाद, वि० सं० १९९२, भद्रबाहु, उपसर्गहरस्तोत्र : चौथी गाथा, पृष्ठ ११।।