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________________ भगवान महावीरके बादका जैन-इतिहास जसे करीब २५०० वर्ष पूर्व जब भगवान महावीर Satist भारतवर्ष में अपना कल्याणकारी उपदेश दे रहे थे, उस समय आजकी तरह प्रचारके इतने साधन न थे। उस समय लेखन-कला तो प्रचलित थी, पर उसका उपयोग अधिकतर व्यावहारिक कामों में ही किया जाता था । आत्मार्थी लोग भगवान् का उपदेश श्रवण करने जाते थे। वहाँ जो कुछ वे सुनते थे, उसमेंसे मुख्य-मुख्य बातें हृदयंगम कर लिया करते थे। इसके अतिरिक्त महावीर भगवानके समयमें और उनके सैकड़ों वर्ष बाद तक आचार्य अपने शिष्योंको सूत्रों के पाठ कण्ठ करा दिया करते थे। उसी प्रकारकी प्रथा अब तक जैन साधुओंमें पाई जाती है। इससे स्पष्ट विदित होता है कि जैन समाजमें इतिहास लिखनेकी प्रथा बहुत कम थी। जो कुछ प्राचीन इतिहास पाया जाता है, वह साधुओंकी पट्टावलियोंसे मिलता है। इसके अतिरिक्त बौद्ध-ग्रन्थों, शिलालेखों और जिन-प्रतिमाओंपरसे ही बहुत सा इतिहास मिल सकता है। ___ महवीर भगवान के समयमें और उनके बाद अनेक राजाओं और अनेक राजाओंके मंत्रियोंने जैनधर्मकी प्रभावना, प्रचार आदि करने में कोई कसर नहीं रक्खी थी। राजा श्रेणिक, राजा
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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