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* भगवान् महावीरके बादका जैन-इतिहास * ४५ कौणिक और चन्द्रप्रद्योत श्रादिने जैनधर्मकी बड़े उत्साह व समारोहके साथ प्रभावना की थी। इनको महावीर भगवानके परमभक्त होनेका सम्मान प्राप्त था । 'सम्प्रति' नामका राजा पक्का जैनी था। उसने अनार्य देश, जैसे-काबुल, बिलोचिस्तान आदि देशोंमें जैनधर्मका प्रचार करायाथा, जिसमें बहुत कुछ सफलता मिली थी। राजा आमशिलादित्यने सम्पूर्णतया जैनधर्मके गौरवकी रक्षा की थी। अन्तमें जैन राजा बन राज, सिद्धराज और कुमारपाल आदिने आम घोषणा कराकर अहिंसा धर्मका प्रचार कराया था। इनके अतिरिक्त अनेक प्रतापी राजमन्त्री, जैसे-शकडाल, विमल, उदयन, वाग्भट्ट, वस्तुपाल, तेजपाल आदिने अहिंसा धर्म फैलानेका प्रशंसनीय उद्योग किया था, जिनका वैभव समस्त भारतवर्षमें फैला हुआ था।
इधर एक ओर वीर प्रभुके द्वारा प्रोत्साहित जैनधर्मने ऐसेऐसे वीर आर्य धर्मरक्षक राजाओं व मंत्रियोंको उत्पन्न किया था और दूसरी ओर उसने ऐसे-ऐसे सच्चरित्र और प्रतापी जैनाचार्योंको जन्म दिया कि जिन्होंने अपने अगाध पाण्डित्यका परिचय देकर जगतको आश्चर्य में डाल दिया है। उनके रचित ग्रन्थ आज भी संसारको आश्चर्यमें डाल रहे हैं। इतना ही क्यों, उन्होंने ऐसे-ऐसे असाधारण कार्य किये हैं कि जिनका करनासामान्य मनुष्यकी तो बात ही क्या है, अच्छे-च्छे शक्ति-सम्पन्न मनुष्यों केलिये भी दुःसाध्य है । जैसे मौर्यवंशीय सम्राट चन्द्रगुप्तको प्रति