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* जेल में मेरा जैनाभ्यास *
[प्रथम
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कर्म पशुओंके तुल्य होंगे। मर कर बुरी गतिको प्राप्त होंगे। यह पारा भी २१ हजार वर्षका ही होगा।
इस प्रकार अपसर्पिणीके छह आरोंका वर्णन हुआ । इन छह आरोंमें १० क्रोडाकोड़का समय लगता है।
अब उत्सर्पिणीके छह आरोंका वर्णन करते हैं । उत्सर्पिणी अर्थात् उल्टी सपिणी । इसका मतलब यह होता है कि इसका पहला श्रारा अपसर्पिणीके छठे आरके अनुसार होता है। दूसरा
आरा पाँचवें आरेके, तीसरा पारा चौथे आरेके, चौथा आरा तीसरे आरेके, पाँचवाँ अारा दूसरे आरेके और छठा आरा पहले पारेके समान होता है। अपसर्पिणीके आरे
उत्सर्पिणीके आरे १ सुखमें सुख
६ सुखमें सुख २ सुख
५ सुख ३ सुखमें दुःख
४ सुखमें दुःख ४ दुःख में सुख
३ दुःखमें सुख ५ दुःख
२ दुःख ६ दुःखमें दुःख
१ दुःखमें दुःख उत्सर्पिणीका संक्षेपमें वर्णन इस भांति हैपहला भाराः-इसमें दुःखमें दुःख होता है। इसमें मनुष्यों । और वस्तुओंकी वही न्यूनता होती है, जो अपसर्पिणीके छठे , बारेमें होती है।
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