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खण्ड ] * जैनधर्मानुसार जैनधर्मका संक्षिप्त इतिहास * ४१
चौथे आरे - में नव प्रतिवासुदेव हुए उनके नाम इस प्रकार हैं१ - सुग्रीव (अश्वग्रीव), २ तारक, ३ मेरुक, ४ मधुकैटभ, ५ निशुम्भ, ६ बली, ७ प्रहरण, ८ रावण और ६ जरासंध |
पाँचवाँ आरा—इस आरेका नाम दुष्षमा आरा है, अर्थात् इसमें केवल दुःख ही होता है । महावीर भगवान् के निर्वाणके तीन वर्ष साढ़े सात महीने पीछे पाँचवाँ आरा लगा है। इस आरेमें मनुष्योंके संगठन, आयु, बल, वीर्य्य, पुरुषार्थ और तमाम पदार्थों में चौथे आरके मुक़ाबिले में एक बहुत बड़ी न्यूनता हो गई है ।
यह आरा २१ हजार वर्षका होता है। इस आरेमें दस बातों का सर्वथा लोप हो जाता है -१ केवलज्ञान, २ मनः पय्येव ज्ञान, ३ अवधिज्ञान, ४ परिहारविशुद्ध चरित्र, ५ सूक्ष्मसांप्राय चारित्र ६ यथाख्यातचारित्र, ७ पुलाक-लब्धि = आहारक शरीर, ६ क्षायिकसम्यक्त्व और २० जिनकल्पी साधु । श्राज वक्रम संवत् १९८६ तक इस आरेमें करीब २४६२ वर्षे व्यतीत हो चुके हैं।
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छठा आरा – इस आरेका नाम दुष्षमा- दुष्षमा आरा है। इसमें दुःख में दुःख उत्पन्न होते हैं। इस आरेमें पाँचवे आरेकी अपेक्षा बहुत छोटे कद वाले, कम उम्र, कुरूप, कमजोर और पुरुषार्थ
हीन मनुष्य होंगे और ऐश-आराम के सारे सामान नष्ट हो जायँगे । लोग गुफ़ाओं और ज़मीन के नीचे घर बना कर रहेंगे । हर प्रकार
के खाने-पीने व आरामका दुःख मिलेगा। इस आरेमें मनुष्यों के