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________________ वक्रवती वासुदेव-बलदेव में चक्रवर्ती, वासुदेव-बलदेव, श्रादि भी अनेक नि माननीय पुरुष होते हैं। इनकी विभूति छह खण्डका साधन करते हैं। इनके हजारों होते हैं। छह खण्डोंमें हजारों देश व उनके तो चक्रवर्तीकी आज्ञा मानते हैं अर्थात् सेवामें ० रानियाँ और लाखों दास-दासी आदि होते हैं । दल आदि लाखों करोड़ोंकी संख्यामें इनकी वर्तीके चौदह रत्न होते हैं। एक-एक रत्नके ति हैं। चक्रवर्तीके चौदह रत्न इस प्रकार हैं: रत्न, छह खण्ड साधनका रास्ता बताता है। .) दण्ड के ऊपर शीत तथा धूपसे रक्षा करता है। में कोस रहेका प्रबन्ध करता है। (४) खङ्ग रत्न का मिर छेद डालता है । (५) मणि "चन्द्र-जैमा प्रकाश करता है। (६) गादि नदियों को पार करती है। वाररके तमाम फ़ौज व चक्रवर्तीको सी प्रकार प्रह अश्व, न, पुरोहित, सेनापति, चर्म, ' र रखा जट-जैमा प्रक । इ रथ रत्न भी अपना-अपनकार्य करते हैं।
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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