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खण्ड ]
* परमेष्ठी अधिकार *
पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं। दस प्रकारका करते हैं; बारह प्रकारका तप करते हैं । अठारह सर्वथा त्याग करते हैं । इनके अतिरिक्त श्राप परिणामी, निरभिमानी, संयमी, निस्स्वार्थी युक्त होते हैं।
प्रश्न- उक्त लक्षणोंसे युक्त साधुजीको क्या हेतु है ?
उत्तर - जो आत्मा के कल्याणका सदा ध्य उन्हें साधु कहते हैं । वे हमसे अधिक धर्म रूप रहते करनेमें अतितत्पर रहते हैं। ऐसे साधुओंका परम आवश्यक है ।
प्रश्न - साधुत्रों का ध्यान किसके समान करना चाहिये ?
उत्तर - साधुयों का ध्यान आषाढ़ के मेव ना चाहिये । उक्त गुण युक्त माधु
में विचरते हैं। एक समय में समस्त जार कोड और उत्कृष्ट नव हजार
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समान इया
३ द्वीप और प
सारमें कम-से-कम
रण साधु-साध्वी ह