________________
खण्ड]
* नवतश्व अधिकार *
३८१
प्रास्त्रव जिस प्रकार नावमें छिद्र होनेसे पानी आनेके कारण वह नाव डूब जाती है, उसी प्रकार संसार रूपी समुद्रमें आस्रव रूपी छिद्रसे पाप रूपी पानीके भर जानेसे आत्मा रूपी नाव डूब जाती है। अर्थात् कोंके आनेके द्वारको 'प्रास्त्रव' कहते हैं। कोंके आनेके द्वार अनेक हैं। उनका वर्णन शास्त्रकारोंने इस प्रकार किया है:
शाखकारोंने बीस प्रकार, बयालीस प्रकार और सत्तावन प्रकारसे प्रास्त्रव होना बताया है।
बीस भेद इस प्रकार हैं:
१-मिथ्यात्वको सेव तो श्रास्रव, २-अत्रत अर्थात् प्रत्याख्यान नहीं करे तो पासव, ३-पाँच प्रमाद सेवन करे तो आस्रव, ४-पचीस कषाय सेवन करे तो आस्रव, ५-अशुभ योग प्रवत्वे तो श्रास्रव, ६-प्राणातिपात अर्थात् जीवकी हिंसा करे तो बास्त्रव, ७-मृषावाद अर्थात् झूठ बोले तो पासव, ८-अदत्तादान अर्थात् चोरी करे तो प्रास्त्रव, ६-मैथुन अर्थात् कुशील सेवन करे तो आस्रव, १०-परिग्रह अर्थात् धन, कंचन
आदि रक्खेतोपात्रव,११-श्रोत्रेन्द्रिय वशमें न रक्खे तो श्रास्रव, १२-चक्षुरिन्द्रिय वशमें न रक्खे तो प्रास्त्रव, १३-नाणेन्द्रिय वशमें न रक्खे तो पासव, १४-रसेन्द्रिय वशमें न रक्खे तो प्रास्रव, १५-स्पर्शेन्द्रिय वशमें न रक्खे तो श्रास्रव, १६-मनकों