________________
३८२
* जेलमें मेरा जैनाभ्यास *
तृतीय
-
वशमें न रक्खे तो आस्रव, १७-वचनको वशमें न रक्खे ता आस्रव, १८--कायको वशमें न रक्खे तो भास्रव, १६-भंड उपकरण अर्थात् सामान आदि असावधानीसे रक्खे तो भास्रव, २०-सुई कुशमात्र असावधानीसे ले या रक्खे तो श्रास्रव ।
बयालीस प्रकारका आस्रव इस भाँति मानते हैं:
पाँच इन्द्रियोंके विषयोंसे, चार कषायोंसे, तीन अशुम योगोंसे, पञ्चीस क्रियाओंसे, पाँच अव्रतोंसे, इस प्रकार ब्यालीस प्रकारसे भी आस्रवका होना माना गया है।
सत्तावन प्रकारसे प्रास्रवका होना इस प्रकार बतलाया है:उपरोक्त ब्यालीस प्रकारों में पन्द्रह योग और शामिल कर देनेसे आस्रवके सत्तावन प्रकार हो जाते हैं ।
आस्रवको करनेवाली पच्चीस क्रियाएँ ये हैं:
१-देव, गुरु और धर्मकी भक्ति आदि करना सम्यक्त्व क्रिया; २-अन्य कुदेव, कुगुरु, कुधर्म की स्तुति करना मिथ्यात्व क्रिया; ३-कामादिकसे गमनागमनादिरूप करना प्रयोग क्रिया; ४-ईर्यापथ अर्थात् गमनकेलिये क्रिया करना ईर्यापथ क्रिया; ५-वीर्यान्तराय और ज्ञानावरणीय कर्मके क्षयोपशय हो जानेपर आङ्गोपाङ्ग नामकर्मकी प्राप्तिसे आत्माको मन, वचन और कायके योग्य पुद्गलोंके ग्रहण करनेकी जो शक्ति होती है, वह समादान क्रिया; ६-क्रोधके आवेशसे जो क्रिया हो वह प्रादोषिकी क्रिया; ७-दुष्टताकेलिये उद्यम करना कायिकी क्रिया -हिंसाके