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खण्ड)
* नवतत्त्व अधिकार *
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८-औदारिक शरीर, E--वैक्रियिक शरीर, १०-आहारिकशरीर, ११-तैजस शरीर, १२-कार्मण शरीर, १३-औदारिक अङ्गोपाङ्ग, १४-वैक्रियिक अङ्गोपाङ्ग, १५-पाहारिक अङ्गोपाङ्ग, १६-वऋषभनाराचसंहनन, १७-समचतुरस्रसंस्थान, १८शुभ वर्ण, १६-शुभ गन्ध, २०-शुभ रस, २१-शुभ स्पर्श, २२-शुभ, २३-सौभाग्य, २४-सुस्वर, २५-यशः कीर्ति, २६-देवायु, २७-मनुष्यायु, २८-तिर्यगायु, २६-तीर्थंकर, ३०-मनुष्यगत्यानुपूर्व्य, ३१-देवगत्यानुपूर्व्य, ३२-अगुठलघु, ३३-परघात, ३४-उच्छ्वास, ३५-श्रातप, ३६-उद्योत, ३७-शुभविहायोगति, ३८-त्रम, ३६-वादर, ४०-पर्याप्त, ४१-प्रत्येकशरीर, ४२-स्थिर नाम कर्म। ___ पुण्य और पाप दोनों संसारके कारण हैं। पाप लोहेकी बेड़ी के समान है तो पुण्य सोनेकी बेड़ीके समान है । अाखिर बेड़ीबन्धन दानों हैं। इस कारण आत्मार्थी प्राणियोंको तो दोनों त्याज्य हैं । फिर वह पुण्य कैसे करता है ? - जैसे किसान जब चावलोंकी खेती करता है, तब उसका मुख्य उद्देश्य चाँवल उत्पन्न करनेका रहता है और चाँवलोंका जो पलाल (भूसा) है, उसमें उसकी इच्छा नहीं रहती, तथापि उसको बहुत-सा पलाल मिल ही जाता है। इस प्रकार मोक्ष चाहनेवाले जीवोंको वाञ्छा बिना ही पुण्यकी प्राप्ति हो जाती है और उस पुण्य से स्वर्गमें इन्द्र-लौकान्तिकदेव आदिकी विभूति तकको जीव प्राप्त