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* जेलमें मेरा जैनाभ्यास *
[तृतीय
कमजोरों श्रादिकी सेवा शुश्रूषा करनी चाहिये । निर्बलों, असहायों और अबलाओंकी बलवानों और निर्दयोंसे रक्षा करनी चाहिये। ६-गुणियोंको नमस्कारः
सच्चे और त्यागी मुनियों और साधुओंको नमस्कार अर्थात् बन्दना आदि करना। इसके अलावा बुजुर्गों, विद्वानों, गुणियों आदिको नमस्कार करना चाहिये ।
इसके अलावा और दूसरे कार्योंसे भी पुण्यका उपार्जन होता है। जैसे:-विद्यादान देना, अभयदान देना, आदि। __ सदा सुपात्रको दान देना चाहिये । इसके अलावा दान व साहाय्य तो सिर्फ उन्हींका होना चाहिये, जो उसके पात्र हैं अर्थात् जो जरूरत वाले हैं। अकसर ग़फ़लत और लेहतलालीकी वजहसे ऐसे मनुष्योंको दान पहुँच जाता है, जो उसका दुरुपयोग करते हैं। ऐसी अवस्थामें बजाय पुण्यके पापका ही बन्ध हो जाता है। हाँ ! दान देनेवालेके भाव यदि शुद्ध हैं तो उससे पुण्य ही होता है । इस कारण दान सदा सोच-समझ और देख-भाल कर देना चाहिये । बहुतसे धूर्त, पाखंडी, प्रमादी दान ले जाकर कुव्यसन और व्यभिचार आदिमें लगाते हैं।
जो प्राणी सुपात्र-दान देते हैं, वे बयालीस प्रकारसे पुण्यके फलको भोगते हैं:
१-सातावेदनीय, २-उच्च गोत्र, ३-मनुष्य गति, ४-देव गति, ५-मनुष्यानुपूर्वी, ६-देवानुपूर्वी, ७-पञ्चेन्द्रिय जाति,