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________________ खण्ड *नवतत्त्व अधिकार * ३७५ Sanction साताकारी मकान अथवा स्थान आदिका प्रबन्ध करना । जो आदमी धर्मशाला आदि बनवाते हैं, वे भी पुण्य उपार्जन करते हैं। ५-वस्त्रका दान: सच्चे त्यागी, मुनियों और साधुओंको स्वच्छ और शुद्ध वस्त्र वैराना । इनके अलावा अनाथों, असहायों, विधवाओं, वृद्धों, आदिको वस्त्र दान देना और जाड़ोंमें जो निधन मनुष्य हों उनकी वस्त्रसे सहायता करनी चाहिये । ६-मनमें शुभ चिन्तनः प्रत्येक प्राणीको सदा अपने मनसे दूसरोंके प्रति अर्थात् प्राणीमात्रके वास्ते शुभ चिन्तन व शुभ भावना रखनी चाहिये । कभी किसीके प्रति बुरे ख्याल स्वप्न तकमें भी नहीं लाने चाहिये। ७-वचनसे शान्ति देनाः अगर कोई प्राणी दुःख, तकलीफ, कष्ट या सन्ताप अवस्थामें है तो उसको शान्ति देनी चाहिये । इसके अलावा सदा कोमल और मृदु वचनोंसे बोलना चाहिये । अर्थात् कभी क्रोध, घृणा, कठोरताके शब्द नहीं बोलने चाहिये। सदा गुणियोंके गुणगान करते रहना चाहिये। ८-कायसे सेवाः अगर कोई साधु या मुनि तकलीफ या कष्टमें हो तो उसकी सेवा भक्ति करनी चाहिये । इसके अलावा कष्ट-पीड़ित, रोगियों,
SR No.010089
Book TitleJail me Mera Jainabhayasa
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages475
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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