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** जेलमें मेरा जैनाभ्यास *#
[तृतीय
कारण उनको पुण्य उपार्जन करना चाहिये । शास्त्रकारोंने पुण्यउपार्जन करने के लिये अनेक मार्ग-साधन बताये हैं । यथा:
१ - अन्नका दान, २- पानीका दान, ३ - पात्रका दान, ४मकानका दान, ५ - वस्त्रका दान, ६ - मनसे शुभ चिन्तन करना, ७ - वचनसे शान्ति देना - शरीरसे सेवा आदि करना और ९ - वृद्धों व गुणियों को नमस्कार आदि करना ।
१- अन्नका दान:
सच्चे त्यागी मुनियों-साधुओंका शुद्ध आहार दान देना । इनके अलावा अनाथ, अपाहिज असहाय, विधवा, अकाल पीड़ितों आदिको अन्न दान अर्थात् भोजन देना ।
२- पानीका दानः
सच्चे त्यागी मुनियों-- साधुओंका शुद्ध व चित्त पानी वैराना | इनके अलावा मनुष्यों, पशुओं आदिकलिये प्याऊ
आदिका प्रबन्ध करना ।
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३- पात्र का दान:
सच्चे त्यागी मुनियों-- साधुओंको पात्र ( काष्ठके वर्तन ) आदि देने । इनके अलावा जिन अनाथों, असहायों, बेवाओं, निर्धनों के पास पात्र न हों तो उन्हें पात्र देना ।
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४- मकानका दानः-
साधु-मुनि सदा भ्रमण किया करते हैं। उनके कोई मकान नहीं होते हैं। अगर वे भ्रमण करते भावें तो उनके ठहरने केलिये