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* जेल में मेरा जैनाभ्यास *
[तृतीय
मूढ़ता अर्थात् जिनभाषित धर्मका स्वरूप नहीं समझना, ये तीन
मूढ़ताएँ हैं ।
सम्यक्त्व-नाशके पाँच कारण
सम्यक्त्वके घातक मुख्य पाँच कारण ये हैं: - १ - ज्ञानका अभि मान, बुद्धिकी हीनता, निर्दय वचनोंका भाषण, क्रोधी परिणाम और प्रमाद ।
सम्यक्त्वके पाँच प्रतीचार
सम्यक्त्व के पाँच अतिचार हैं। शङ्का, काङ्क्षा, विचिकित्सा, अन्यदृष्टिप्रशंसा और अन्यदृष्टिसंस्तव, ये पाँच सम्यक्त्वके अतिचार हैं। इनका वर्णन पहले किया जा चुका है
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उपरोक्त पाँच प्रकारके अतिचार सम्यग्दर्शनके उज्ज्वल परिरणामोंको मलीन करते हैं।
मोहनीय कर्म की जिन सात प्रकृतियों के अभाव से सम्यग्दर्शन प्रकट होता है । वे निम्न प्रकार हैं:
सम्यक्त्वकी घातक चारित्रमोहनीय की चार और दर्शनमोहनीयकी तीन, इस प्रकार सात प्रकृतियाँ हैं। वे इस प्रकार है:१ - अनन्तानुबन्धी क्रोध, २ - अभिमानके रेंगसे रंगी हुई अनन्तानुबन्धी मान, ३ - अनन्तानुबन्धी माया, ४ - परिग्रहको पुष्ट करने वाली अनन्तानुबन्धी लोभ, ५ - मिध्यात्व, ६ - मिश्रमिध्यात्व और ७ - सम्यक्त्वमोहनीय। इनमें से शुरू की छह प्रकृतियाँ व्यात्रिणी