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रखण्ड
* सम्यक्त्व अधिकार *
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के समान सम्यक्त्वके पीछे पड़कर उसे भक्षण करनेवाली हैं और सातवीं स्त्रीके समान सम्यक्त्वका सकंप व मलीन करनेवाली है।
जो प्राणी उपरोक्त सात प्रकृतियोंको उपशमाता है, वह औपशमिकसम्यग्दृष्टि है और जो सातों प्रकृतियोंको क्षय करनेवाला है, वह क्षायिकसम्यग्दृष्टी है। यह सम्यक्त्व कभी नष्ट नहीं होता। सात प्रकृतियों से कुछका क्षय हो और कुछका उपशम हो तो वह क्षयोयशमसम्यक्त्वी है। उसे सम्यक्त्वका मिश्ररूप स्वाद मिलता है। छह प्रकृतियाँ उपशम हों व क्षय हों अथवा कोई क्षय
और कोई उपशम हो, केवल सातवीं प्रकृति सम्यक्त्वमोहनीयका उदय हो तो वह वेदकसम्यक्त्वधारी होता है।
सम्यक्त्व नौ प्रकारका होता है:-क्षयोपशमसम्यक्त्व तीन प्रकारका है, वेदक सम्यक्त्व चार प्रकारका है और उपशम तथा क्षायिक, ये दो प्रकार ।
क्षयोपशमसम्यक्त्वके तीन भेदः
१-अनन्तानुबन्धी चौकड़ोका क्षय और दर्शनमोहनीय त्रिकका उपशम । यह परिणामका पहिला भेद है।
२-अनन्तानुबन्धी चौकड़ी और महामिथ्यात्वका क्षय और मिश्रमिथ्यात्व और सम्यक्त्वमोहनीयका उपशम । यह परिणाम का दूसरा भेद है।
३-अनन्तानुबन्धी चौकड़ी, महामिध्यात्व और मिश्रका क्षय और सम्यक्त्वमोहनीयका उपशम । यह परिणामका तीसरा भेद है।