________________
खण्ड] * सम्यक्त्व अधिकार *
३६५ सम्यक्त्वके पच्चीस दोष सम्यग्दर्शन पञ्चीस दोपोंसे रहित होना चाहिये । उसके पच्चीस दोष ये है:-आठ मद,पाठ मल, छह अनायतन और तीन मूढ़ता:
आठ मदः
जाति, धन, कुल. रूप, तप, बल, विद्या और अधिकरण इनका गर्व करना । ये आठ प्रकारके महामद हैं।
पाठ मलःजिन-वचनमें सन्देह, श्रात्म-स्वरूपसे चिगना, विपयोंकी अभिलाषा, शरीरादिसे ममत्व, अशुचिमें ग्लानि, सहधर्मियांस द्वेष, दूसरोंकी निन्दा, धर्म-प्रभावनाओंमें प्रमाद, ये आठ मल सम्यग्दर्शनको दृषित करते हैं ।
छह अनायतन:
कुगुरु, कुदेव, कुधर्मके उपासकांकी और गुरु, कुदेव और कुधर्मकी प्रशंसा करना, ये छह अनायतन हैं।
तीन मूढ़ताः
देवमूढ़ता अर्थात् सच्चे देवका स्वरूप नहीं जानना, गुरुमूढ़ता अर्थात् निर्ग्रन्थ मुनिका स्वरूप नहीं समझना और धम.
* अधिकरणके स्थानपर कहीं-कहीं 'पूजा' मी मानी गई है। यथाः
"ज्ञानं पूजां कुलं जातिं बलमृद्धिं तपो वपुः । अष्ठावाश्रित्य मानित्वं स्मयमाहुर्गतस्मयाः ॥"