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३६४ * जेलमें मेरा जैनाभ्यास * तृतीय प्रगट होनेवाला सम्यग्दर्शन 'निसर्गज' कहलाता है। और किसीकिसीको गुरूपदेशसे भी प्रगट होता है। गुरूपदेशसे प्रगट होनेवाला सम्यग्दर्शन 'अधिगमज' कहलाता है।
सम्यक्त्वके चिन्ह आत्मा अपने में ही आत्म-स्वरूपका परिचय पाता है, उसमें उसे कभी सन्देह नहीं उपजता और उसका छल कपट-रहित वैराग्य भाव रहता है। यही सम्यग्दर्शनका चिन्ह है। अथवा
(१) शम-कदाग्रह और ममत्वका उपशमन (२) संवेग-सांसारिक बंधनोंका भय
(३) निर्वेद-वैराग्य अर्थात् सांसारिक पदार्थोंसे दूर होने की इच्छा
(४) अनुकम्पा-दूमरे जीवोंका दुःख दूर करनेकी भावना (५) आस्तिक्य-सद्धर्मपर अटल श्रद्धान होना ये पाँच लिङ्ग अर्थात् सम्यक्त्वके चिन्ह हैं।
सम्यग्दर्शनके पाठ गुण करुणा, मैत्री, सजनता, स्वलघुता, समता, श्रद्धा, उदासीनता और धर्मानुराग, ये सम्यक्त्वके पाठ गुण हैं।
सम्यक्त्वके पाँच भूषण जैनधर्मकी प्रभावना करनेका अभिप्राय, हेय-उपादेयका विवेक, धीरज, सम्यग्दर्शनकी प्राप्तिका हर्ष और तत्त्व विचारमें चतुराई, ये पाँच सम्यग्दर्शनके भूषण हैं।